मुंबई (उत्तम हिन्दू न्यूज): भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को कहा कि इस समय के हालात में कई देशों में मुद्रास्फीतिजनित मंदी का खतरा मंडरा रहा है लेकिन भारत अर्थव्यवस्था की हालात में सुधार को मजबूत करने के मामले में बेहतर स्थिति में है।
बढ़ती भू-राजनीतिक अस्थिरता और मुद्रास्फीति के बीच जारी आरबीआई की एक रिपोर्ट में भारत की आर्थिक वृद्धि की मध्यकालिक संभावनाए बढ़ाने के लिए बुनियादी सुधारों को जारी रखने की जरूरत पर बल दिया गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 में कहा गया है कि ऐसे समय में जबकि आर्थिक हालात सुधारने के प्रयास को समर्थन के काम को प्राथमिकता देने की जरूरत है, ऊंची मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने को प्राथमिकता देने की मौद्रिक नीति अपना (कर्ज महंगा करना और नकदी के प्रवाह को कम करना) केंद्रीय बैंकों की मजबूरी बन गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में 24 मई तक उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के 40 से अधिक केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत ब्याज दरों में वृद्धि की है या तो तरलता को कम करने के कदम उठाए हैं।
आरबीआई ने रिपोर्ट में कहा है,“ वृद्धि को प्रोत्साहन और मुद्रास्फीति के अंकुश के लिए नीतिगत उपायों में संतुलन बनाना आगे जटिल होता जा रहा है और इससे कई देशों के ऊपर स्टैगफ्लेशन (मुद्रास्फीतिजनित मंदी) के जोखिम मंडरा रहे हैं।” किसी देश में मुद्रास्फीतिजनित मंदी एक ऐसी स्थिति है जिसमें कीमत स्तर बहुत ऊंचा हो जाता है लेकिन अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो जाती है या मंदी जैसी स्थिति हो जाती है और बेरोजगारी भी बढ़ने लगती है।
गौरतलब है कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अभी मार्च में ही भारतीय अर्थव्यवस्था के मुद्रास्फीतिजनित मंदी की स्थिति में फंसने की संभावना से इनकार किया था।
केंद्रीय बैंक ने रिपोर्ट में कहा गया है,“इन प्रतिकूल अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों के बीच, भारतीय अर्थव्यवस्था आर्थिक वृद्धि दर को मजबूत करने और आगे चलकर व्यापक आर्थिक संभावनाओं में सुधार करने की अपेक्षाकृत अधिक अच्छी स्थिति में
है। ”
भू-राजनीतिक तनाव से प्रभाव के प्रतिकूल प्रभावों को देखते हुए ही मौद्रिक नीति समिति ने अप्रैल में 2022-23 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के अनुमान को संशोधित कर 7.2 प्रतिशत कर दिया था। इससे पहले उसका अनुमान 7.8 प्रतिशत था। रुस-यूक्रेन संघर्ष के बीच कच्चे तेल के बाजार में कीमतों में उछाल ने निजी खपत पर प्रतिकूल प्रभाव तथा शुद्ध निर्यात कम होने और आयात बढ़ने की संभावना को देखते हुए आरबीआई ने भारत की वृद्धि दर के अनुमान को घटाया है।
भारत में अप्रैल 2022 में खुदरा मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति 7.79 प्रतिशत थी।
रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि मौद्रिक नीति उदार बनी हुई है लेकिन ध्यान इस उदार रुख को बदलने पर केंद्रित हो गया है। अब प्राथमिकता आर्थिक वृद्धि को मजबूत बनाने का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति को लक्षित दायरे (2-6 प्रतिशत) तक सीमित रखने की है।
गौरतलब है कि मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने नियमित समय से पहले 2- 4 मई को बुलाई गयी अपनी बैठक में नीतिगत ब्याज दर ( रेपो दर) को चार प्रतिशत से बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत करने का निर्णय लिया था। करीब चार वर्ष के बाद बाद इस तरह का कदम उठाया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है,“आर्थिक वृद्धि की आगे की राह आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को दूर करने के उपायों, आर्थिक वद्धि का समर्थन करते हुए मुद्रास्फीति को लक्ष्य के भीतर लाने के लिए मौद्रिक नीति में संशोधन और समग्र मांग, विशेष कर पूंजीगत व्यय को प्रोत्साहित करने के लिए लक्षित राजकोषीय नीति समर्थन से तय होगी। ”
आरबीआई ने देश की मध्यम अवधि की वृद्धि की संभावनाएं बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधारों की अवश्यकता पर बल दिया है।
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