सरकार ने ‘संसद का विशेष सत्र’ 18 से 22 सितंबर को बुलाया है। इसमें पांच बैठकें होंगी। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने गत बृहस्पतिवार को सोशल मीडिया साइट ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘संसद का विशेष सत्र (17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 261वां सत्र) 18 से 22 सितंबर को बुलाया गया है।’ संसद के इस विशेष सत्र के एजेंडे के बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है। संसदीय कार्यमंत्री ने कहा, ‘अमृत काल में होने वाले इस सत्र में संसद में सार्थक चर्चा और बहस होने को लेकर आशान्वित हूं।’ सूत्रों के अनुसार, विशेष सत्र के दौरान संसदीय कामकाज नये संसद भवन में स्थानांतरित हो सकता है जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 मई को किया था। संसद के नये भवन से जुड़े निर्माण कार्यों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। आमतौर पर संसद के तीन-बजट, मानसून और शीतकालीन सत्र होते हैं। विशेष परिस्थितियों में संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने का प्रावधान है। हाल में चंद्रयान-3 मिशन की सफलता और अमृतकाल के दौरान भारत के लक्ष्य भी विशेष सत्र में चर्चा का हिस्सा हो सकते हैं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मोदी सरकार अपने एजेंडे में शामिल समान नागरिक संहिता (यूसीसी), ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ कराए जाने से संबंधी बिल और महिला आरक्षण विधेयक समेत अन्य कई महत्वपूर्ण बिलों पर चर्चा करा सकती है। वहीं, जब वन नेशन, वन इलेक्शन बिल को लेकर मुंबई में हो रही विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की बैठक से इतर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि ‘उन्हें लाने दीजिए, हमारी लड़ाई जारी रहेगी।’ लोकसभा के पूर्व सचिव पीटीडी आचार्य ने कहा कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, राजनीतिक तौर पर उन्हें कुछ करना हो सकता है। बहुत ही जरूरी विधायी कार्य सरकार करना चाहती हो। एक यह भी हो सकता है कि विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव कराने की बात हो। इसी तरह का अंदेशा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी जता चुके हैं। उनका कहना है कि सरकार समय से पहले लोकसभा चुनाव करवा सकती है। विशेष सत्र को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर अडानी ग्रुप का जिक्र करते हुए निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि ये घबराहट की निशानी है। ऐसा ही पैनिक मेरे संसद में बोलने पर हुआ था। इस कारण मेरी संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी। पैनिक इसलिए है क्योंकि मामला पीएम मोदी के करीबी का है।’ लोकसभा में नेता कांग्रेस अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘पता नहीं सरकार की क्या मंशा है। हो सकता है कि पीएम मोदी की कोई नई सोच होगी। पुरानी इमारत से नई इमारत में जाना। पूजा पाठ करना। वगैरह-वगैरह…कुछ धमाकेदार करना। अपनी अलग-अलग सोच हो सकती है, लेकिन अजीब लगता है।’ पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे की शिवसेना की नेता और राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कहा, ‘चोरी से प्रह्लाद जोशी ने निर्णय लिया कि संसद का स्पेशल सेशन 18 से 22 सितंबर तक होगा। मेरा सवाल है कि गणेश चतुर्थी जो कि भारत और खासकर महाराष्ट्र के लिए बहुत बड़ा हिंदू त्यौहार है। ऐसे में ये हिंदू विरोधी जो काम हो रहा वो क्यों हो रहा है? किस आधार पर निर्णय लिया गया है? ये ही तारीख क्यों चुनी गई?’ दिल्ली की केजरीवाल सरकार में मंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि केंद्र सरकार प्रजातंत्र का गला घोंट रही है। उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार किसी से राय नहीं लेती। क्यों सत्र बुलाया गया? इसके बारे में कुछ नहीं पता। पुराने सत्र में किसी को बोलने नहीं दिया गया।’ दरअसल संसद का मानसून सत्र 11 अगस्त को ही खत्म हुआ था। तब मणिपुर हिंसा को लेकर ज्यादातर कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ गई थी। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बीजेपी का एक राष्ट्र एक चुनाव का विचार असंवैधानिक है। यह संविधान की मूल धारणा को प्रभावित करेगा। हमारी मांग है कि चीन पर चर्चा की मांग को सुना जाए और देश को इस विषय में भी जानकारी दी जाए। गौरतलब है कि इससे पहले संसद का विशेष सत्र 30 जून, 2017 की मध्यरात्रि को आयोजित किया गया था, जो जीएसटी के लागू होने के अवसर पर था। हालांकि यह लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र था। वहीं, अगस्त 1997 में छह दिनों का विशेष सत्र आयोजित किया गया था जो भारत की आजादी की 50वीं वर्षगांठ के उत्सव के अवसर पर था। भारत छोड़ो आंदोलन की 50वीं वर्षगांठ पर 9 अगस्त 1992 को मध्यरात्रि सत्र आयोजित किया गया था। भारत की आजादी के रजत जयंती वर्ष पर 14-15 अगस्त 1972 को और भारत की आजादी की पूर्व संध्या पर 14-15 अगस्त 1947 को पहला ऐसा विशेष मध्य रात्रि सत्र आयोजित किया गया था।
मोदी सरकार द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने के साथ ही विपक्षी दलों का ध्यान जो मोदी विरोध पर टिका हुआ था अब अपने-अपने राजनीतिक भविष्य की तरफ चला गया है। देश की राजनीतिक परिस्थितियों और समय को देखते हुए मोदी सरकार द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाया जाना एक ऐसा राजनीतिक कदम है जिसमें विरोधियों के बने चक्रव्यूह को तोडऩे की क्षमता है। यह बात विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा प्रकट प्रतिक्रिया से भी स्पष्ट हो जाती है।
– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)
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