1960 के दशक में हिन्दी फिल्म आई थी ‘20 साल बाद’। मुख्तार अंसारी को 32 साल बाद मिली सजा ने उस फिल्म की याद ताजा कर दी है। उत्तर प्रदेश के माफिया मुख्तार अंसारी को अवधेश हत्याकांड में एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी ठहराते हुए उम्रकैद और 1 लाख 20 हजार के जुर्माने की सजा सुनाई है। गौरतलब है कि अंसारी परिवार पर 97 मुकद्दमें चल रहे हैं। मुख्तार अंसारी पर 61 केस, भाई अफजल अंसारी पर सात, सिबगतुल्लाह अंसारी पर तीन मुख्तार की पत्नी आयाशा पर 11, मुख्तार के बेटे अब्बास पर आठ, उमर अंसारी पर छह और अब्बास की पत्नी निखत बानो पर एक समेत परिवार पर 97 मुकदमें दर्ज हैं।
पिछले 17 वर्षों से जेल में रह रहे मुख्तार अंसारी का जेल से बाहर आना अब मुश्किल है। मुख्तार अंसारी के अवधेश हत्याकांड में 32 वर्ष बाद मिली सजा हमारी न्यायिक प्रक्रिया की कमजोरी को भी जगजाहिर करती है। देश में बढ़ रहे अपराधों का एक बड़ा कारण हमारी न्याय प्रक्रिया की धीमी गति भी है। पिछले दिनों कई दिल दहलानेे देने वाली हत्याएं सामने आई हैं, लेकिन कानूनी प्रक्रिया की उलझनभरी राह के कारण आरोपियों को सजा मिलने में वर्षों लग जाएंगे। देरी से मिला न्याय अपना महत्व तो खोता ही है साथ में आरोपियों के हौसले भी बुलंद करता है। पीडि़त परिवार भी दहशत में रहते हैं।
पिछले दिनों एक हुए सर्वेक्षण अनुसार इस देश की विभिन्न अदालतों में लाखों केसों का ढेर लगा हुआ है। कारण वही है-तारीख पर तारीख, लेकिन इन तारीखों के पीछे भी कई कारण हैं। एक लाख से ज्यादा मुकदमों की रफ्तार अदालत के स्थगन आदेशों ने थाम रखी है। 54 लाख मुकदमों की सुनवाई वकीलों की अनुपलब्धता के कारण अटकी है। 33 लाख से ज्यादा मुकदमे अभियुक्तों की फरारी के कारण रुके हैं। 27 लाख मुकदमों की सुनवाई में देरी के कारण महत्वपूर्ण गवाहों का न पेश होना, जबकि 13 लाख से ज्यादा मुकदमें दस्तावेजों के इंतजार में थमे हैं। 22.5 लाख मुकदमों की सुनवाई अन्य कारणों से रुकी है। यानी त्वरित न्याय चाहिए तो हर स्तर पर सक्रियता बढ़ानी होगी। अदालतों की लंबित मामलों को खत्म करने की कोई भी योजना सफल होने के लिए जरूरी है कि सुनवाई में हो रही देरी के जिन कारणों को चिन्हित किया गया है उन्हें जल्दी से जल्दी दूर किया जाए।
अपराधियों को इस बात का एहसास है कि उलझनदार और धीमी गति की न्यायिक प्रक्रिया के कारण जहां उनके पास बच निकलने का अवसर है वहीं सजा भी जल्दी मिलने की संभावना कम होने के कारण वह बेखौफ होकर जुर्म करते हैं। अंसारी परिवार इस बात का उदाहरण है। देश में अगर बढ़ते अपराधों पर नकेल डालनी है तो न्यायिक प्रक्रिया तेज करनी होगी। हत्या, अपहरण और बलात्कार जैसे जघन्य मामलों में तो एक समय सीमा के बीच ही आदेश आने चाहिएं।
32 साल बाद मिला फैसला देश की न्यायपालिका के कमजोर पक्ष को ही उजागर करता है। इस कमजोरी को दूर करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। जिस दिन यह कमजोरी दूर हो जाएगी उसी दिन से देश में जघन्य अपराध होने भी कम होने लगेंगे।
– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)
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