हमीरपुर(उत्तम हिन्दू न्यूज)- प्रदेश में करीब एक महीने से सरकार की नोटिफिकेशन के बाद बंद पड़े स्टोन क्रेशरों को लेकर क्रेशर मालिकों की सांसे फूलने लगी है। बेचैन क्रेशर लॉबी में से कुछ लोग हल्ला मचा रहे हैं कि हमीरपुर को छोड़ कर बाकी सब स्थानों पर क्रेशर चलाने की अनुमति सरकार ने दे दी है । हालांकि सरकार और विभाग की माने तो यह हल्ला सिर्फ हल्ले के लिए किया जा रहा है वास्तव में जिन क्रेशर संचालकों को क्रशड मैटीरियल को बेचने की अनुमति सरकार ने दी है वह क्रेशर क्रशड मैटीरियल को बेच रहे हैं।
व्यास व सतलुज नदियों में मिलने वाले खड्डो, नालों पर जो क्रेशर लगे हुए हैं उनको आपदा के कारण हुई भयंकर तबाही का कारण मानते हुए सरकार ने फिलहाल इन क्रैशरों को बंद किया हुआ है। कांगड़ा, हमीरपुर में इन बंद पड़े क्रेशरों की संख्या 16 बताई जाती है जबकि भोरंज व बड़सर की शुक्र व शीर खड्डों में लगे 9 क्रेशर अनुमति के बाद चल रहे हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक इस स्टोन क्रेशर के इर्द गिर्द ऑक्सन भूमि पर मैटीरियल खत्म होने की वजह से इसको बंद कर दिया गया था लेकिन इस बार हुई भरी बरसात इस स्टोन क्रेशर के लिए वरदान साबित हुई है क्योंकि शुक्र खड्ड में आई बाढ़ के साथ इस क्रेशर की ऑक्सन भूमि पर करोड़ों मिट्रिक टन मैटीरियल बाढ़ के साथ बह कर आ पहुंचा है। जिसके चलते इस स्टोन क्रेशर को अगले एक हफ्ते में चलाने की अनुमति मिल सकती है।
उधर व्यास व व्यास नदी में मिलने वाली खड्डों पर लगे 16 बंद पड़े क्रेशरों को चलने के लिए अभी तक दो महीने का और समय लग सकता है। विभागीय सूत्रों की माने तो सरकार ने इस संदर्भ में एक राज्यस्तरीय कमेटी का गठन करके कमेटी को आदेश दिए हैं कि वह व्यास नदी व इसकी सहयोगी खड्डों पर लगे क्रशरों की साइट को विजिट करके गहन जांच के बाद रपट तैयार करके इस तथ्य की जांच करें कि बाढ़ के कारण जो नुकसान हुआ है क्या उसका कारण इलिगिल माइनिंग या अनसेंटिफिक माइनिंग रही है जिसमें इस जांच की अवधि डेढ़ महीना फिक्स की गई है। उस हिसाब से इस बंद पड़े क्रेशरो को चलने में दो महीने का समय लगना स्वाभिक हैं। उधर हमीरपुर के कुछ क्रैशरो को मैटीरियल क्रशड करने की अनुमति केस वाइज एक दो दिनों में मिलने की भी पुष्ट सूचना है ।
माइनिंग को लेकर एक सुखद व आश्चर्यजनक पहलू यह उभर कर आया है कि जिन जिन खड्डों नालों पर साइंटिफिक माइनिंग हुई थी उन खड्डों में नुकसान न के बराबर हुआ है क्योंकि बाढ़ के पानी को रास्ता मिलने के कारण पानी किनारों की तरफ नहीं फैला। हमीरपुर की प्लाही खड्ड पर बने पुल के खतरे को देखते हुए यह स्पष्ट हो गया है कि साइंटिफिक माइनिंग न केवल क्रेशर संचालकों बल्कि सरकार की आर्थिकी को भी बड़ा आधार दे सकती है। इस प्लाही खड्ड पर बने पुल के आसपास माइनिंग नहीं हुई थी जिस कारण बाढ़ से बह कर यहां लाखों मीट्रिक टन मलबा पुल के इर्द गिर्द जमा हो गया है। आलम यह है कि अब इस पुल की धरातल से दूरी मात्र दो मीटर से भी कम रह गई है। जिस कारण से इस पुल के वजूद को खतरा बन कर रह गया है। विभाग की माने तो अब इस पुल के इर्द गिर्द जमा हुए लाखों मिट्रिक टन मैटीरियल की ऑक्सन का मशादा तैयार कर लिया गया है ताकि इस पुल के वजूद को बचाया जा सके।
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