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भारतवर्ष नाम नहीं, सम्मान है

सत्ता के साथ ही बहुत कुछ बदल जाता है, यह हमने इतिहास में पढ़ा और जाना है लेकिन क्या सत्ता का रास्ता सरल होता है, यह भी एक बहुत बड़ा प्रश्न है। भारतवर्ष ही नहीं, विश्व की बात करें तो पूरे विश्व ने जो दो महायुद्ध देखे, वे सभी सत्ता के कारण ही रहे। अपनी ताकत दिखाने के लिए रहे, अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए रहे। एक युद्ध तो अभी भी चल ही रहा है। भारतवर्ष भी इन सभी बातों से अछूता नहीं रहा है। 
भारतवर्ष ने कितने ही विदेशी आक्र मणकारियों के हमलों को सहा है पर उसने अपने अंदर के मूल स्वभाव और परिस्थितियों को नहीं खोया है। आर्यों का यह देश अपनी सनातन प्रवृत्ति के कारण ज्यों का त्यों बना रहा। विदेशी आक्र मणकारी भारतवर्ष में आते रहे, अपने धर्म का, अपने ग्रंथों का प्रचार प्रसार करते रहे लेकिन हमारे ग्रंथों का मूल भाव, उनके अंदर छिपा ज्ञान, विश्व के लिए आदर्श बना रहा है और भारतवर्ष विश्व के सामने विश्व गुरु को रूप में जाना जाता रहा है।
सत्ता परिवर्तन के साथ ही समाज बदलता है, संस्कृतियाँ बदलती हैं, भाषाएँ बदलती हैं, रहन-सहन खान-पान आदि बहुत कुछ बदलता है। भारतवर्ष के स्वतंत्र होने के बाद यहाँ पर लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार सबसे ज्यादा रही। अन्य दलों की सरकारें भी बनी तो उसमें कांग्रेस की भूमिका अहम रही लेकिन पिछले दो चुनावों से अर्थात् सात वर्षों से भाजपा की सरकार आई परिस्थितियाँ बदली, समाज, संस्कृति आदि बदली तो बहुत से लोग अपने ही देश के सत्ताधारी राजनेताओं का विरोध करते करते देश का ही विरोध करने लगे। देश तोडऩे वाली शक्तियों के साथ मिलकर देश में हमेशा विद्रोह, तनाव, झगड़े, आंदोलन, हिंसा, दंगे आदि की बातों को बढ़ावा देते रहते हैं। कभी जाति के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, कभी भाषा के नाम पर, राज्य या व्यवस्था के नाम पर अलगाव पैदा करते रहते हैं। जिन राजनेताओं तथा लोगों ने कभी भारतवर्ष के वह राज्य और कालोनियाँ देखी भी नहीं हैं, वहाँ जा जाकर वह लोग सत्ता का विरोध कर रहे हैं। अब उन राजनीतिक दलों का कोई वजूद भी नहीं है लेकिन अपनी जमीन तलाश रहे हैं।
देश को तोडऩे वाली बातों में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया जा रहा है। देश विरोधी ताकतों को नायक बनाकर दिखाया जा रहा है जबकि सत्ता बदलती रहती है लेकिन राष्ट्र नहीं बदलता। सही मायने में देश ने पिछले सात-आठ वर्षों में जो उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, उन पर चर्चा बहुत कम दिखाई देती है। विरोध की बातें अधिक सुनाई पड़ती है। राष्ट्र सभी का है, सभी को इसके विकास के लिए काम करना होगा, इसको तोडऩे का काम नहीं करना है। राष्ट्र और राष्ट्रवाद की भावना कभी नहीं बदलती, उसका मूल नहीं बदलता, उसके जीव, जंतु, पशु, पक्षी, नदी, नाले, पर्वत, माटी कुछ नहीं बदलता, बदलता है तो केवल शासन।
व्यक्ति हो या समाज, अच्छा करो, देश के लिए करो, देश की माटी के लिए करो। इसके विरोध के लिए किसी के दिल में भी कोई जगह नहीं है। यह देश एक-एक देशभक्त के रक्त से बना है। इस देश को बनाने में उन देशभक्तों के खून का एक-एक कतरा यहां पर बहा है। उन्हें भुलाया नहीं जा सकता। देश जमीन का टुकड़ा नहीं, भावनाओं का सागर है, आस्थाओं का पुँज है, वीर सपूतों की कुर्बानी का सपना है, हमारा अपना है। देश सत्य की ताकत से चलता है, झूठ फैलाने से नहीं। इस बात को हमें समझना होगा और उन देशभक्तों की कुर्बानी को हमेशा याद रखना होगा।
डा. नीरज भारद्वाज

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