अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस प्रत्येक वर्ष एक जून को मनाया जाता है। बाल रक्षा दिवस का उद्देश्य विश्व के 2.5 अरब से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य केा सुनिश्चित करने की आवश्यकता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। भारत में गरीबी कुपोषण ,अशिक्षा ,अंधविश्वास ,सामाजिक कुरीति, बाल विवाह और बॉल मजदूरी बचपन के सबसे बड़े दुश्मन हंै। आजादी के 75 साल के बाद भी हम इनसे निजात नहीं पा सके हंै। बच्चे देश का भविष्य हैं यह सुनते-सुनते हमारे कान पक चुके हंै। मगर देश के कर्णधार आज तक बचपन को सुरक्षित जामा नहीं पहना पाए हैं। इससे अधिक हमारा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। 1959 में बाल अधिकारों की घोषणा को 20 नवंबर 2007 को स्वीकार किया गया। बाल अधिकार के तहत जीवन का अधिकार, पहचान, भोजन, पोषण, स्वास्थ्य, विकास, शिक्षा ,मनोरंजन, नाम, राष्ट्रीयता, परिवार और पारिवारिक पर्यावरण, उपेक्षा से सुरक्षा, बदसलूकी, दुव्र्यवहार, बच्चों का गैर-कानूनी व्यापार आदि शामिल है। बच्चों में अपराध और बाल मजदूरी के मामले में भी हमारा देश आगे है।
हालांकि सरकार दावा कर रही है कि बाल मजदूरी में अपेक्षाकृत काफी कमी आई है। सरकार ने बाल श्रम रोकने के लिए अनेक कानून बनाए हैं और कड़ी सजा का प्रावधान भी किया है मगर असल में आज भी लाखों बच्चे कल-कारखानों से लेकर विभिन्न स्थानों पर मजदूरी कर रहे हैं। चाय की दुकानों पर, फल-सब्जी से लेकर मोटर गाडिय़ों में हवा भरने, होटल, रेस्टोरेंटों में और छोटे-मोटे उद्योग धंधों में बाल मजदूर सामान्य तौर पर देखने को मिल जाते हैं। राजस्थान, एम.पी., यू.पी., हरियाणा, पंजाब सहित विभिन्न प्रदेशों में बिहार और बंगाल के बच्चे मजदूरी करते देखने को मिल जाएंगे। सरकारी प्रयासों से कई बार प्रशासन ने ऐसे बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराकर उनके घरों पर भेजा मगर गरीबी के हालात इनकी प्रगति एवं विकास में अवरोध बने हुए हैं। जितने बच्चे बाल श्रम से मुक्त कराए जाते हैं, उससे अधिक बच्चे फिर बाल मजदूरी में फंस जाते हैं। ये बच्चे गरीबी के कारण स्कूलों का मुंह नहीं देखते और परिवार पोषण के नाम पर मजदूरी में धकेल दिये जाते हैं।
देश में गरीबी के कारण भी बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में बेहद पिछड़े हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के बेहद गरीब 120 करोड़ लोगों में से लगभग एक तिहाई बच्चे हमारे देश के हैं। नेशनल सेम्पल सर्वे संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दो तिहाई लोग पोषण के सामान्य मानक से कम खुराक प्राप्त कर रहे हैं। एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट में बताया गया है कि कुपोषित और कम वजन के बच्चों की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत भाग भारत में है।
बच्चों को पढऩे लिखने और खेलने कूदने से वंचित करना सबसे बड़ा अपराध है। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए वह हर जतन करना चाहिये जिससे बच्चे अपने अधिकारों को प्राप्त कर सके। सरकार के साथ साथ समाज का भी यह दायित्व है कि वह बचपन को सुरक्षित रखने का हर प्रयास करे जिससे हमारा देश प्रगति और विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ सके। बच्चों का बचपन सुधरेगा तो देश का भविष्य भी सुरक्षित होगा। बच्चों के कल्याण की बहुमुखी योजनाओं को धरातली स्तर पर अमलीजामा पहनाकर हम देश के नौनिहालों को सुरक्षित जीवन प्रदान कर सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के बेहद गरीब 120 करोड़ लोगों में से लगभग एक तिहाई बच्चे हमारे देश के हैं। नेशनल सेम्पल सर्वे संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दो तिहाई लोग पोषण के सामान्य मानक से कम खुराक प्राप्त कर रहे हैं।
एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट में बताया गया है कि कुपोषित और कम वजन के बच्चों की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत भाग भारत में है। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए वह हर जतन करना चाहिये जिससे बच्चे अपने अधिकारों को प्राप्त कर सके। सरकार के साथ साथ समाज का भी यह दायित्व है कि वह बचपन को सुरक्षित रखने का हर प्रयास करे जिससे हमारा देश प्रगति और विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ सके। बच्चों का बचपन सुधरेगा तो देश का भविष्य भी सुरक्षित होगा। बच्चों के कल्याण की बहुमुखी योजनाओं को धरातली स्तर पर अमलीजामा पहनाकर हम देश के नौनिहालों को सुरक्षित जीवन प्रदान कर सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
बाल मुकुन्द ओझा
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