पहाड़ों से लेकर नदियों व समुद्र में कचरे की समस्या से जूझते विश्व के सामने अब घरों में बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक कचरा एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा है। स्मार्ट फोन और लैपटॉप सहित अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण घरों में बेकार पड़े होने के कारण कचरे में तबदील हो रहे हैं और इस कचरे को धरती में दबाये जाने के कारण खतरनाक ई कचरा रिसने की आशंका चिंता को और बढ़ा देती है।
इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक एसोसिएशन द्वारा कराये गये सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार 40 फीसदी प्रतिभागियों ने माना कि उनके पास मोबाइल और लैपटॉप सहित कम से कम चार उपकरण ऐसे हैं, जो वर्षों से खराब पड़े हैं। उपभोक्ताओं के इस बर्ताव के पीछे तीन मुख्य कारण हैं: अच्छे आर्थिक प्रोत्साहन का अभाव, उपकरणों से व्यक्तिगत लगाव क्योंकि बहुत अधिक निजी डेटा होने के कारण लोग इन्हें छोडऩा ही नहीं चाहते और जागरूकता का अभाव। सर्वेक्षण से पता चलता है कि पांच में से दो उपभोक्ता बेकार उपकरण रीसाइक्लिंग के लिए देने से मना कर देते हैं। उन्हें पता ही नहीं है कि रीसाइक्लिंग कितनी जरूरी है। रिपोर्ट कहती है कि वित्त वर्ष 2021 में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों (हर 15 मोबाइल फोन पर 1 लैपटॉप) की संख्या करीब 51.5 करोड़ थी। मगर 7.5 करोड़ बेकार भी पड़े थे। इस तरह संख्या 20.6 करोड़ होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले वर्षों में यह संख्या बढ़ी ही होगी। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की रीसाइक्लिंग मुख्य तौर पर दो रास्तों से होती है-अनौपचारिक कबाडिय़ों के जरिये और थोक कबाड़ कारोबारियों के जरिये। अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले कबाड़ी उपभोक्ताओं के घर से बेकार पड़े उपकरण इक_े कर लेते हैं, जबकि औपचारिक तौर पर काम करने वाले थोक कबाड़ कारोबारी संबंधित ब्रांड के साथ मिलकर काम करते हैं। उपभोक्ताओं के घरों से करीब 90 फीसदी बेकार पड़े मोबाइल फोन अनौपचारिक कबाडिय़ों के जरिये ही जाते हैं। वास्तविक रीसाइक्लिंग के समय 70 फीसदी उपकरण अनौपचारिक क्षेत्र के जरिये आते हैं जबकि 22 फीसदी संगठित कंपनियों के जरिये। 2 फीसदी उपकरणों का इस्तेमाल पुर्जे निकालने के लिए होता है, मगर इसमें समय लगता है। बाकी को जमीन के भीतर गड्ढे में डाल दिया जाता है, जहां खतरनाक ई-कचरा रिसने की आशंका बनी रहती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मरम्मत की जरूरत वाले करीब 60 फीसदी उपकरणों को सस्ते अनौपचारिक क्षेत्र में खपा दिया जाता है। इसमें वारंटी की अवधि खत्म होने वाले मोबाइल फोन आदि शामिल होते हैं। इस बाजार में महज 18 फीसदी उपभोक्ता ही संगठित कंपनियों के जरिये अपने उपकरणों की मरम्मत कराते हैं।
भारतीयों के घरों में बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक कचरा पर्यावरण की दृष्टि से एक चिंता का विषय है। धरती में दबाये जाने के कारण ई-कचरा रिसता है तो स्थिति बद से बदतर हो जाती है। सरकार को ई-कचरा निपटाने और रिसाइकल करने के लिए तत्काल रूप से ठोस कदम उठाने चाहिए। सामाजिक व व्यक्तिगत स्तर पर भी ई-कचरे से होने वाले नुकसान को लेकर अभियान चलाकर जन साधारण को जागरूक करने की आवश्यकता है।
– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)
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