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किसान आंदोलन

किसान संगठनों द्वारा किये गये रेल रोको आंदोलन के दौरान फिरोजपुर डिवीजन की कुल 381 पैसेंजर व 17 गुड्स ट्रेनें प्रभावित हुईं। 227 ट्रेनों को रद्द किया गया, 73 ट्रेनों को शार्ट टर्मिनेट, 31 को शार्ट ओरिजिनेट और 50 ट्रेनों को डायवर्ट किया गया। इसके साथ-साथ यात्रियों को लाखों रुपए यात्रा रद्द होने के कारण वापस करने पड़े। रेलवे अनुसार 2023 में 5 बार किसानों द्वारा रेल रोको आंदोलन किया जा चुका है। अतीत में जाएं तो पायेंगे कि 2021 और 22 में भी कई बार रेल रोको आंदोलन हो चुके हैं लेकिन न तो सरकार झुकने को तैयार है और न ही किसान संगठन।

किसान संगठनों ने अब 23 और 24 को किसानी दशहरा मनाने की घोषणा की है। अतीत में भी किसान संगठनों ने हिन्दुओं के त्यौहार पर ही ऐसी घोषणा की थी, लेकिन बाद में दशहरे के दिन की बजाये एक दिन आगे कार्यक्रम टाल दिया गया था। किसान संगठनों की मांग है कि उत्तर भारत के बाढ़ प्रभावित राज्यों में सभी फसलों पर पैकेज दिया जाए। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार गारंटी कानून तथा फसलों के दाम, खेत मजदूरों को संपूर्ण कर्ज मुक्ति मनरेगा में हर साल 200 दिन का रोजगार, दिल्ली आंदोलन के दौरान किए गए पुलिस केस रद्द कर लखीमपुर नरसंहार के दोषियों पर कार्रवाई की जाए।

भाखड़ा बांध बनने और पंजाब के किसानों की मेहनत के कारण ही 1960-70 के दशक में अनाज की किल्लत का सामना कर रहा देश अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हुआ। उत्तरी राज्य आज भी देश स्तर पर 35 से 40 प्रतिशत के करीब खाद्यान्न की आपूर्ति करते हैं। पंजाब की देश व विदेश में एक अलग पहचान होने का मुख्य कारण यहां का किसान ही है। समय और परिस्थितियों के कारण आ रहे बदलाव के साथ-साथ अपने आप को न बदलने के कारण गेहूं और चावल की खेती पर ही निर्भर होने के कारण पंजाब का किसान आज आर्थिक परेशानियों को झेल रहा है। 

कृषि विशेषज्ञों अनुसार पंजाब का किसान आर्थिक परेशानी से तभी छुटकारा पा सकेगा जब वह गेहूं और चावल की खेती पर अपनी निर्भरता को कम करेगा और साथ ही अन्य व्यवसाय जैसे मछली पालन, मुर्गी पालन, गौ व भैंस को पालने के साथ-साथ दालों और सब्जियों की फसल पर भी ध्यान देगा। यह सब कुछ एक झटके के साथ तो हो नहीं सकता, धीरे-धीरे ही होगा लेकिन किसान आर्थिक गारंटी चाहता है, वह भी सदा के लिए यह संभव नहीं। 

इस कारण पैदा हुए तनाव व अनिश्चितता के दौर में किसान संगठन जब सडक़ व रेल रोको आंदोलन शुरू करते हैं तो शायद यह भूल जाते हंै कि उनके आंदोलन से हजारों-लाखों लोगों के जीवन में भी यह आंदोलन अनिश्चितता व तनाव का दौर पैदा कर देता है। इसी कारण किसान संगठनों की छवि व साख दोनों पर बुरा प्रभाव ही पड़ता है।

पंजाब को विश्व स्तर पर पहचान देने में किसानों ने विशेष भूमिका निभाई है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पंजाब के किसानों ने अपने आंदोलन तेज किए हैं उससे पंजाब की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। पंजाब की आर्थिक मजबूती व विकास के लिए उद्योगों का विकसित होना और नये उद्योगों का पंजाब में आना बहुत आवश्यक है। लेकिन जिस तरह आंदोलन दौरान सडक़ व रेल मार्ग रोकने को अंजाम दिया जाता है उससे पंजाब में लगे उद्योगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है और नये उद्योग लगने से भी उद्योगपति पीछे हट रहे हैं। यह स्थिति पंजाब व पंजाबियों के लिए हानिकारक है। यह बात किसान संगठनों को समझनी चाहिए। 

व्यापार और उद्योग अगर पंजाब में कमजोर हो जाते हैं तो यह बात पंजाब के लिए विनाशकारी ही साबित होगी। पंजाब के किसान संगठनों को समय की नजाकत को समझते हुए तथा पंजाब के हित को प्राथमिकता देते हुए प्रदेश और केंद्र की सरकार से संवाद द्वारा ही अपनी समस्याओं का हल ढूंढना चाहिए। पंजाब व पंजाब के लोगों के हित को सम्मुख रख कर किसानों को आंदोलन की राह छोडक़र संवाद द्वारा ही हल ढूंढना चाहिए।

झुकते नवजोत सिद्धू

– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)  

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