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विशाल विरासत को अपने आप में संजोए हुए है हिन्दू धर्म

अनेक देवी देवताओं में एक ही निर्गुण ब्रह्म की शक्ति प्रकाशित हो रही है। अनेकानेक रूपों में। बहुत सारे देवी-देवता हैं जिन्हें हम भगवान कहते हैं। कुछ को हम अनादि मानते हैं। कुछ को हम ईश्वर का अवतार मानते हैं। जितने भी रूपों में हम ईश्वर को जानते हैं चाहे वह भगवान राम का रूप, कृष्ण का रूप हो,बुद्ध का रूप हो, हनुमान जी हों, विष्णु भगवान हों। भगवान शंकर हों, अयप्पा स्वामी हों और भी कोई देवी देवता हों सभी में एक ही परमात्मा का प्रकाश है। या हम कहें कि एक ही परमात्मा अपने आप को अनेक रूपों में प्रकाशित करता है। हम इसे कई उदाहरणों से समझ सकते हैं। जैसे कि बिजली एक होती है। यह ठंडा भी करती है गर्म भी करती है। ये अलग-अलग काम भी करती है। हम जिस रूप में इसका उपयोग करना चाहते हैं उसका उपयोग करते हैं। जैसे वही इलेक्ट्रिसिटी जब एसी कमरे में प्रवाहित होती है तो कमरे को ठंडा कर देती है। जब हीटर में प्रवाहित होती है तो कमरे को गर्म कर देती है। ओवन में प्रवाहित होती है तो खाना गर्म करने के काम आती है। जब मिक्सी में प्रवाहित होती है तो चीजें को काटने के काम आती है। इस तरह अनेक हजारों काम वही इलेक्ट्रिसिटी करती है।

इलेक्ट्रिसिटी से अनेकानेक प्रकार विपरीत प्रकार के काम होते हैं। इसी तरह से परम प्रभु परमात्मा एक हैं। निर्गुण रूप में। वहां तक हमारी बुद्धि पहुंच नहीं पाती। गम्य नहीं होती। उस रूप में प्रभु एक हैं लेकिन हमारी बुद्धि भगवान को अनेक रूपों में देखती है। जिन रूपों में हमारी बुद्धि परमात्मा को देखती है हम उसे भगवान देवता ईश्वर इत्यादि नामों से सूचित करते हैं। अब जैसे अपने जीवन में अगर ठंड चाहिए तो हम एसी का प्रयोग करते हैं और अगर धन चाहिए तो देवी लक्ष्मी के पास जाते हैं और अगर ज्ञान चाहिए तो हम सरस्वती की उपासना करते हैं। जिस प्रकार हम एक ही विद्युत शक्ति को अपनी इच्छा अनुसार अनेकानेक रूप में प्रयोग में लाते हैं।

हम एक ही विद्युत शक्ति को अपनी इच्छा अनुसार अनेकानेक रूपों में उपयोग में लाते हैं। उसी तरह एक परम चैतन्य परमात्मा को सकारात्मक रूप में हम अपने सांसारिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हम अपने जीवन में अभीष्ट की प्राप्ति के लिए डिजायर जो हमारे पास है जो हम चाहते हैं पाना उसके लिए हम उसको अनेक रूपों में उपासित करते हैं, उसकी उपासना हम करते हैं। अगर हमें किसी विघ्न आ रहा है। समस्या आ रही है तो हम उसी चैतन्य शक्ति की गणेश के रूप में उपासना करते हैं। इसलिए इसे विघ्नहर्ता भी माना गया है। जब हमें शक्ति की आवश्यकता होती है। तो हम दुर्गा के रूप में काली के रूप में ममता की ममतामयी मां के रूप में उसी शक्ति की आराधना करते हैं।
यह सनातन धर्म हिन्दू धर्म बहुत बड़ी विरासत को अपने आप में लिए हुए। यह सत्य के स्वरूप को तार्किक रूप से प्रतिबिम्बित करता है या यह बताता है कि सत्य की अनेक आयाम अनेक रूप हैं और हर रूप अपने आपमें सत्य है। और उस सत्ता का उसके सत्य होने का एक लेवल व अपने लेवल पे तो सत्य है, लेकिन अपने से ऊपर के लेवल पर केवल सापेक्ष रूप में ही सत्य रह जाती है। इसीलिए हमारे यहां अनेक देवी देवता हैं। सभी की उपासना होती है क्योंकि सभी उस परम सत्य परमात्मा की शक्ति से ही चालित हो रहे हैं। जैसे चंद्रमा सूर्य की शक्ति से शासित होता है। सूर्य अपने अंदर की शक्ति से शासित होता है। और इस तरह हम अगर पीछे जाते जाएं। अणु परमाणुओं के और परिजात या सत्व रज, तम गुणों के पदार्थ के परे चले जाएं तो अनंत में विशुद्ध चैतन्य शक्ति हमें मिलती है। वही परमात्मा है उस तक हमारी बुद्धि नहीं पहुंच सकती। बुद्धि उसको निरूपित नहीं कर सकती क्योंकि बुद्धि निरूपित करते ही वह लिमिटेड हो जाता है। और वह चैतन्य शक्ति हमारे सामने विविध रूपों में आती है और मानव मस्तिष्क अनेक रूपों में उसकी उपासना करता है और किस रूप में उसकी उपासना की जाती है, उसी रूप में वह फलदायी होती है। अगर कोई या कहे कि वह इतनी सारे देवी-देवता हैं। इसकी पूजा क्यों उसकी पूजा क्यों। एक की ही पूजा करो वो सब कुछ दे सकता है। तो ऐसा नहीं। समाज में। इस लौकिक संसार में हमें अनेक चीजों की आवश्यकता पड़ती है। हमें धन भी चाहिए। हमें बल भी चाहिए। हमें स्वास्थ्य भी चाहिए। हमें सौन्दर्य भी चाहिए और सांसारिक रूप से इन्हें देने वाले अलग अलग देवी देवता माने गए हैं।
इस तरह से अनेक अनेक उपकरण होते हैं। कुछ ठंड देते हैं। कोई गर्मी देते हैं। कुछ काटने के काम आते हैं। कुछ जोडऩे के काम आते हैं। जिस तरह से अनेकानेक चिकित्सक होते हैं, कुछ स्किन स्पेशलिस्ट होते हैं। कुछ हार्ट स्पेशलिस्ट होते हैं। कुछ किडनी के स्पेशलिस्ट होते हैं। कुछ सर्जन होते हैं। इसी तरह से सांसारिक जीवन में सांसारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अनेकानेक देवी देवता देवता सृष्टि में विद्यमान हैं जो कि हमारी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। हमारे कर्मों के आधार पर हमारे जैसे कर्म होंगे। हम जिस तरह के कर्म करेंगे उसी तरह के परमाणु उसी तरह के इलेक्ट्रॉन उसी तरह की वाइब्रेशन एनर्जी हमारी ओर आकृष्ट होगी और हमारे कर्मों के परिणाम ये देवी देवता हमें देंगे। जैसे दुनिया का कितना भी बड़ा बैंक क्यों न हो, उसका कितना भी पावरफुल मैनेजर या कैशियर क्यों न हो वो आपको आपके डिपॉजिट से ज्यादा नहीं दे सकता। ओवरड्राफ्ट दे सकता है थोड़े टाइम के लिए पर उसे वापस करना होगा या हो सकता है कि आपका पैसा जमा हो जो भी एफडी हो। टाइम कुछ टाइम के बाद मैच्योर हो। वो आपको पहले दे सकता है। अगर आपके पास पैसा है ही नहीं पर आपने कर्म किया ही नहीं है। कुछ तो कोई भी देवी या देवता कोई भी मैनेजर बैंक आपको पैसा नहीं दे सकता। इसलिए धर्म में सबसे महत्वपूर्ण है सत्कर्म, अच्छे कर्म, अच्छी नीयत से किए गए कर्म अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए किए गए कर्म और इन कर्मों के फलस्वरूप जो अब पुण्य संचित करते हैं, उन पुण्यों को ही विभिन्न देवी देवता आपको प्रदान करते हैं। अगर कोई ऐसा करता है कोई संप्रदाय ऐसा कहता है कि आप हमारे पास आ जाओ और जो हमारा देवता हमारा ईश्वर आपके समस्त पापों को खत्म कर देगा तो वह झूठ बोलता है। क्योंकि परमात्मा के लेवल पर सभी बराबर हैं। इस तरफ या उस तरफ ये तो मानव बुद्धि के कार्य हैं। परमात्मा को तो छोड़ दें हमारे देश के कानून जो कि मनुष्यों के बनाए कानून हैं। वह भी बिना किसी जाति या धर्म के लोगों पर लागू होते हैं। अगर कोई व्यक्ति एक धर्म को मानता है। मर्डर करता है दूसरे धर्म को अपना लेता है। क्या उसको मर्डर से बरी कर दिया जाएगा। मुक्त कर दिया जाएगा। अगर कोई देवी देवता या ईश्वर ऐसा है कि किसी मर्डर करने वाले को, किसी बलात्कार करने वाले को केवल इसलिए क्षमा कर देता है कि वह किसी दूसरे की पूजा करता है तो उसे ईश्वर नहीं कहा जा सकता है। देवता नहीं कहा जा सकता है। देवी या देवता आपको वही प्रदान करते हैं जो आपने कमाया है इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है कि हम सत्कर्म करें हम अच्छे कर्म करें उसके बाद हमारा जो अच्छा कर्म है वो हमारे लिए हमारी मुद्रा की तरह है और जो देवी या देवता हैं हमें उसके रूप में देखते हैं कि उस मुद्रा को हम किस रूप में चाहते हैं। उस रूप में देवी या देवता हमें फल देते हैं। अनेकानेक देवी देवता हैं, उनकी पूजा पद्धतियां हैं उन पर आस्था रख कर अपने अंत:करण से सच्चे मन से प्रार्थना करने पर हमें वह प्राप्त होता है। जिसकी हम इच्छा करते हैं बशर्ते हमारे पास कर्मों की जो फिक्स डिपॉजिट है या जो हमारे संचित कर्म होंगे। जो कर्म हमने किए हैं वह एफडी हमारे पास हो तब ही कोई देवी या देवता उसे हमें प्रदान कर सकते हैं जो व्यक्ति बिना कर्म किए फल की इच्छा रखता है, चाहे वो कहीं भी घूमता रहे किसी भी देवी देवता किसी भी संप्रदाय को मानता रहे उसे उसका अपनत्व नहीं मिल सकता। सारे शास्त्रों में कर्मों की यही महिमा बताई गई है। आपको कर्म करने हैं उत्तम कर्म करने हैं तभी आप सांसारिक जीवन को सुखमय तरीके से व्यतीत कर सकते हैं।


मनोज कुमार द्विवेदी
(लेखक आध्यात्मिक गुरु एवं निदेशक, सूचना निदेशालय (दिल्ली सरकार) हैं) 

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