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मैं हिन्दू हूं

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी से उम्मीदवार की दौड़ में शामिल भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी ने कहा है कि ‘मैं एक हिन्दू हूं और मेरी आस्था ने ही मुझे इस राष्ट्रपति अभियान तक पहुंचाया है। मेरा मानना है कि दुनिया में एक भगवान हैं। उन्होंने हम सबको किसी न किसी मकसद से यहां भेजा है।’ अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान आयोवा में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे रामास्वामी ने आगे कहा, ‘मैं एक पारंपरिक घर में पला-बढ़ा हूं। मेरे माता-पिता ने मुझे सिखाया कि परिवार ही नींव है। अपने माता-पिता का सम्मान करें। शादी बहुत ही पवित्र रिश्ता है। इसका अपमान करना बेहद गलत है। उन्होंने कहा कि हम कभी भी तलाक को अपनी प्राथमिकता बनाकर नहीं चुन सकते। हम भगवान के सामने शादी करते हैं। उनके और अपने परिवार को शपथ देते हैं।’ अमेरिका में चुनाव के लिए प्रचार के दौरान रामास्वामी ने आगे कहा-‘भगवान में मेरी आस्था मुझे सिखाती है कि हम सबका एक कर्तव्य है और उसे पहचानना बेहद जरूरी है। हम सब बराबर हैं क्योंकि सभी के अंदर भगवान बसते हैं। यही बात मेरी आस्था की बुनियाद भी है।’

इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी अपने आप को हिन्दू कहने में गर्व महसूस करते हैं, लेकिन दुख की बात यह है कि भारत में जहां 80 प्रतिशत से अधिक हिन्दू रहते हैं वहां अपने आप को हिन्दू कहने वाले को साम्प्रदायिक कहा जाता हैं, ऐसा क्यों ? क्योंकि आजादी के बाद जिन लोगों के हाथ में सत्ता आई उन्होंने अंग्रेजी हकूमत की नीति ‘बांटो और राज करो’ को अपनाते हुए जहां हिन्दू समाज को जाति, क्षेत्र और भाषा के आधार पर बांटा वहीं धर्मनिरपेक्षता के नाम हिन्दू धर्म में विश्वास करने वालों को दबाया और अल्पसंख्यकों को हर क्षेत्र में प्राथमिकता व संरक्षण दिया।

हिन्दू शब्द के साथ-साथ हिन्दू भावनाओं से भी खिलवाड़ किया गया। जबकि सत्य यह है कि आज भारत में विश्व के सभी धर्मों को मानने वाले मान-सम्मान के साथ रह रहे हैं और उन सभी को भारतीय संविधान के अनुसार वह सब अधिकार मिले हुए हैं, जो बहुमत हिन्दू समाज को मिले हैं तो इसका श्रेय हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों को ही जाता है। विश्व में जहां कहीं भी ईसाई या इस्लाम धर्म में विश्वास रखने वाले 80 प्रतिशत या 50 प्रतिशत से भी अधिक किसी देश में हैं तो वह देश ईसाई या इस्लामिक देश घोषित हो चुका है और वहां अल्पसंख्यकों की क्या स्थिति है वह पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश या अरब देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों की हालत से समझी जा सकती है।

रामास्वामी और सुनक से पहले स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि ‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’, विवेकानन्द अनुसार ‘हम उस एक ईश्वर में विश्वास करते हैं, जो हम सभी का पिता है, जो सर्व-व्यापी है, सर्वशक्तिमान है, जो अपनी सन्तान की रक्षा और पथ-प्रदर्शन असीम प्रेम से किया करते हैं। ईसाइयों की भांति हम भी सगुण ईश्वर में विश्वास करते हैं—पर हम इसके भी आगे जाते हैं। हम विश्वास करते हैं कि हम वही हैं—‘सोऽहम्’, उसी का व्यक्तित्व हममें अभिव्यक्त है, वह हममें है और हम उसमें हैं। हमारा विश्वास है कि समस्त धर्मों में सत्य का बीज है और इसीलिए हिन्दू सबका वन्दन करता है; क्योंकि इस संसार में सत्य अस्वीकार करने में नहीं, स्वीकार करने में है। हम परमात्मा को विभिन्न सम्प्रदायों के सर्वसुन्दर पुष्पों का स्तवक अर्पित करेंगे। हम परमात्मा से भक्ति के लिए ही भक्ति करेंगे, पुरस्कार की आशा से नहीं। हमें अपना कर्तव्य करना है, कर्तव्य के लिए, न कि पुरस्कार की आशा से। हमें सुन्दर की उपासना करनी है, सुन्दर ही के लिए, न कि पुरस्कार की आशा से। इस तरह जब हमारा हृदय पवित्र हो जायेगा, तब उस पवित्र हृदय में हमें परमात्मा के दर्शन होंगे।’

स्वामी विवेकानन्द के उपरोक्त विचार हिन्दू धर्म और उसमें विश्वास करने वाले हिन्दुओं को समझने के लिए काफी हैं हिन्दू आज विश्व में जहां कहीं भी है वह अपने विचारों और पुरषार्थ के कारण ही सम्मान पा रहा है। हिन्दुओं की सकारात्मक सोच व उदारशीलता को बाहर सम्मान मिल रहा है, वही भारत में हिन्दू जीवनशैली को निशाना बनाया जा रहा है। उनकी आस्था और भावनाओं से एक वर्ग विशेष खिलवाड़ करना अपना अधिकार मानकर चल रहा है। विदेशों में बसे हिन्दुओं को हिन्दू होने में गर्व है फिर स्वतंत्र भारत में ‘मैं हिन्दू हूं’ यह कहना साम्प्रदायिक कैसे हो सकता है? इसी बात पर आज हिन्दू समाज के बुद्धिजीवियों और संत समाज को चिंतन कर कर्म करने की आवश्यकता है।

झुकते नवजोत सिद्धू

– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)  

 
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