देश में बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य सुरक्षा और सामाजिक व राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है। इस मुद्दे को लेकर एआईसीटीई की सलाहकार प्रथम ममता रानी अग्रवाल ने तकनीकी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और संस्थानों के प्रमुखों को इस संबंध में एक पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें यह समझना चाहिए कि हमारा देश जनसंख्या विस्फोट की चुनौतियों का सामना कर रहा है। भूमि, भोजन, पानी और ऊर्जा जैसे सभी संसाधन बहुत सीमित मात्रा में हैं और तेजी से बढ़ती आबादी की वजह से खाद्य असुरक्षा, पानी व भूमि की कमी, जैव विविधता को नुकसान, प्रदूषण के स्तर में वृद्धि और सामाजिक व राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है।
पत्र में बताया गया कि एआईसीटीई से संबद्ध सभी संस्थानों और विश्वविद्यालयों से अनुरोध है कि वे जनसंख्या विस्फोट के नकारात्मक प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलाएं और जनसंख्या वृद्धि के बुरे प्रभावों पर सम्मेलन, संगोष्ठियां, कार्यशालाएं और अन्य कार्यक्रम आयोजित करें क्योंकि मानव जीवन का समर्थन करने और स्वस्थ पर्यावरण बनाए रखने के लिए जनसंख्या वृद्धि व पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र की क्षमता के बीच संतुलन बनाना बहुत जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक इस साल अप्रैल में भारत, चीन को पछाड़ कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया, जिसके बाद सीमित संसाधनों को लेकर चिंता और बढ़ गई है। विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं कि बढ़ती आबादी और उपलब्ध संसाधनों के बीच संतुलन बनाना भविष्य में काफी मुश्किल हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा अप्रैल में जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत की आबादी अब 142.86 करोड़ हो गई है, जो चीन की आबादी 142.57 करोड़ से थोड़ी ज्यादा है।
बढ़ती जनसंख्या का सर्वाधिक हानिकारक पक्ष है विकास कार्यों पर बुरा प्रभाव, गौरतलब है कि इस जगत में कोई पदार्थ असीम नहीं। साधनों के विकास की भी एक सीमा है। खेतों की उपज की भी सीमा है। औद्योगिक प्रतिष्ठानों की उत्पादन क्षमता की भी सीमा है। गैस, तेल, पेट्रोल, बिजली जैसे ईंधनों की भी एक सीमा है। बढ़ती आबादी के आवास के लिए भी धरती माता की भी सीमा है। वैज्ञानिक और तकनीकी विकास की भी सीमा है। मानव ने जब सीमा लाँघकर प्राकृतिक साधनों का दोहन किया तो प्रकृति भी जनसंख्या की शत्रु बन गई। वनों के कटाव ने बढ़ती जनसंख्या की कृषि और विकास की मांग तो पूरी की, पर सूखा, बाढ़ और प्रदूषण का अभिशाप उसे डसने के लिए दे दिया। परिणामत: भारत की बढ़ती जनसंख्या शुद्ध वायु, शुद्ध जल और भोजन के अभाव को झेलने पर विवश है।
उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कह सकते हैं कि भारत का कल्याण इसी बात में है कि जनसंख्या की बढ़ती गति को धीमा किया जाये। जनसंख्या की बढ़ती गति अगर इस तरह बनी रही तो हम जितना भी विकास कर लें वह हमेशा अधूरा ही रहेगा। आर्थिक रूप से समृद्ध देशों की सफलता का एक बड़ा कारण जनसंख्या की धीमी गति भी है। यह बात हम सबको समझनी चाहिए।
– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)
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