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एलजी और दिल्ली सरकार फिर आमने-सामने, अब सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट कमेटी की चेयरमैनी पर पंगा

नई दिल्ली (उत्तम हिन्दू न्यूज): दिल्ली सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा उपराज्यपाल को सॉलिड बेस्ट मैनेजमेंट पर बनी उच्च स्तरीय कमेटी का चेयरमैन बनाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस फैसले को चुनौती दी है। याचिका में दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से एनजीटी के 16 फरवरी 2023 के आदेश को रद्द करने की अपील की है।

दिल्ली सरकार ने याचिका में कहा है कि एनजीटी का यह आदेश दिल्ली में शासन की संवैधानिक व्यवस्था के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 2018 और 2023 के आदेशों का भी उल्लंघन करता है। गौरतलब है कि अपने आदेश के माध्यम से एनजीटी ने सॉलिड बेस्ट मैनेजमेंट के मुद्दे को हल करने के लिए दिल्ली में विभिन्न प्राधिकरणों को शामिल करते हुए एक कमेटी बनाई है और दिल्ली के औपचारिक प्रमुख एलजी को उसका चेयरमैन बनाया है। इस समिति में दिल्ली के मुख्य सचिव, दिल्ली सरकार के सिंचाई, वन एवं पर्यावरण, कृषि और वित्त विभागों के सचिव, दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, डीडीए के उपाध्यक्ष, केंद्रीय कृषि मंत्रालय से एक प्रतिनिधि शामिल हैं। इसके अलावा, समिति में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) से वन महानिदेशक या उनके द्वारा नामांकित व्यक्ति, जल शक्ति मंत्रालय या (एमओईएफ और सीसी) से एक प्रतिनिधी, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अध्यक्ष भी शामिल हैं। दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की समस्याओं को दूर करने और इसके उपचारात्मक उपायों को अपनाने के लिए विभिन्न विभागों के बीच समन्वय की आवश्यकता को स्वीकार किया है। मगर दिल्ली सरकार ने एनजीटी के आदेश के जरिए एलजी को दी गई कार्यकारी शक्तियों पर कड़ी आपत्ति भी जताई है।

सरकार का कहना है कि यह शक्तियां देना विशेष रूप से दिल्ली की चुनी हुई सरकार की क्षमता के तहत आने वाले क्षेत्रों पर अतिक्रमण है। दिल्ली सरकार की याचिका में लिखा है कि एनजीटी ने उपराज्यपाल को कमेटी का चेयरमैन नियुक्त किया है, जबकि ऐसी कमेटी की अध्यक्षता करने के लिए उपराज्यपाल को कोई भी वैधानिक या संवैधानिक शक्ति नहीं दी गई थी। दिल्ली सरकार ने अपनी अपील में तर्क दिया कि दिल्ली में प्रशासनिक ढांचे और संविधान के अनुच्छेद 239एए के प्रावधानों के अनुसार, भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस से संबंधित मामलों को छोडक़र एलजी औपचारिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं। इन तीनों विषयों पर एलजी संविधान द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हैं। दिल्ली सरकार ने विभागों के बीच समन्वय के महत्व को स्वीकार किया है, लेकिन इस बात पर भी जोर दिया है कि एनजीटी के आदेश में इस्तेमाल भाषा दिल्ली की चुनी हुई सरकार को दरकिनार करती है। याचिका में ये दलील दी गई है कि एक ऐसे प्रशासनिक व्यक्ति, जिसके पास संवैधानिक जनादेश नहीं है, उसे कार्यकारी शक्तियां देना असल में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के अधिकार क्षेत्र को कमजोर करता है। इसके अलावा, दिल्ली सरकार ने कहा है कि एनजीटी द्वारा सुझाए गए उपचारात्मक कदम जैसे कि नई अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाएं स्थापित करना, मौजूदा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं को बढ़ाना और पुराने अपशिष्ट स्थलों का उपचार करना आदि के लिए दिल्ली सरकार की विधानसभा द्वारा अधिकृत बजटीय आवंटन की जरूरत होती है। इसलिए इस संबंध में चुनी हुई सरकार की भूमिका अत्यंत महत्वूपर्ण हो जाती है। दिल्ली सरकार की याचिका में कहा गया है कि एनजीटी अपने आदेश में काफी आगे बढ़ गया है और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के उद्देश्य से रिंग-फेंस पर्यावरण मुआवजे वाले खाते को बनाए रखने व उसे संभालने का अधिकार भी उच्च स्तरीय कमेटी को दे दिया है। इस पर आपत्ति जताते हुए दिल्ली सरकार ने कहा है कि यह स्पष्ट रूप से संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन है, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को नियंत्रित करता है।

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