मंगलवार को नये संसद भवन में शुरू हुई लोकसभा की कार्यवाही के साथ ही संसदीय इतिहास में एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। सरकार ने सबसे पहले लोकसभा, राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण प्रदान करने संबंधी ऐतिहासिक ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ पेश किया। विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने लोकसभा में ‘संविधान (एक सौ अ_ाईसवां) संशोधन विधेयक, 2023’ पेश किया। विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक, पहली दशकीय जनगणना के पश्चात ही महिलाओं के लिए आरक्षण लागू होगा। प्रावधान यह भी है कि सीटों के परिसीमन के बाद ही कानून पर अमल होगा। दरअसल जो जनगणना वर्ष 2021 में पूर्ण होनी थी वह अब तक नहीं हुई। न ही सीटों के परिसीमन की कवायद शुरू हुई है।
इस लिहाज से आगामी आम चुनाव यानी वर्ष 2024 तक कानून बनने के बावजूद महिलाओं को आरक्षण मिलना दूर की कौड़ी ही साबित होगी। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि वर्ष 2029 तक भी अगर यह लागू हो जाये तो बड़ी बात है। इन्हीं मुद्दों पर विपक्ष इसे ‘चुनावी जुमला’ कह रहा है। बिल पेश करते वक्त मेघवाल ने कहा कि विधेयक के कानून बन जाने के बाद 543 सदस्यों वाली लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या मौजूदा 82 से बढक़र 181 हो जाएगी। विधेयक में फिलहाल 15 साल के लिए आरक्षण का प्रावधान है और संसद को इसे बढ़ाने का अधिकार होगा। केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि महिलाओं की आरक्षित सीट में भी अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण होगा।
विपक्षी दलों ने ‘नारी शक्ति वंदन’ विधेयक पर सरकार को घेरते हुए कहा है कि चुनावी जुमलों के इस मौसम में यह सभी जुमलों में सबसे बड़ा है। करोड़ों भारतीय महिलाओं और युवतियों की उम्मीदों के साथ बहुत बड़ा धोखा है। मोदी सरकार ने अभी तक 2021 की दशकीय जनगणना नहीं कराई है जिससे भारत जी20 में एकमात्र देश बन गया है जो जनगणना कराने में विफल रहा है। उनके मुताबिक, विधेयक में यह भी कहा गया है कि आरक्षण अगली जनगणना के प्रकाशन और उसके पश्चात परिसीमन प्रक्रिया के बाद ही प्रभावी होगा। क्या 2024 चुनाव से पहले होगी जनगणना और परिसीमन? विपक्ष का आरोप है कि मूल रूप से यह विधेयक अपने कार्यान्वयन की तारीख के बहुत अस्पष्ट वादे के साथ आज सुर्खियों में है। यह कुछ और नहीं, बल्कि ईवीएम-इवेंट मैनेजमेंट है।
विपक्ष की मांग है कि विधेयक से परिसीमन और जनगणना के प्रावधान को हटाया जाए तथा 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए महिला आरक्षण लागू किया जाए। महिला आरक्षण को 33 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जाना चाहिए। पक्ष और विपक्ष के बीच चले शब्दों के बाणों से उनके राजनीतिक लक्ष्यों का पता चलता है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि बेशक यह देर से उठा एक कदम है। आगामी कुछ वर्षों के बाद जब लागू होगा तो यह जहां महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों को सुरक्षित करेगा, वहीं महिलाओं का सशक्तीकरण भी करेगा।
गौरतलब है कि 1989 में महिला आरक्षण को लेकर सुझाव आया था और समय की सरकारों ने इस सुझाव को आगे बढ़ाया और आज विधेयक के रूप में अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है।
– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)
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