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भारतीय गौरव का प्रतीक नया संसद भवन

SCHOOL OF EMINEC PUNJAB

आज प्रथम पूज्य व विघ्नहर्ता सिद्धिविनायक श्री गणेश जी के प्रकट दिवस पर भारत की संसदीय कार्यवाही नये संसद भवन से शुरू होने जा रही है। यह सभी भारतीयों के लिए गौरव के पल हैं। संसद के पुराने भवन को अलविदा कहने के अवसर पर सांसदों को संबोधित होते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘संसदीय यात्रा उसका एक बार फिर स्मरण करने के लिए और नए सदन में जाने से पहले इतिहास की महत्वपूर्ण घड़ी को याद करते हुए आगे बढऩे का अवसर है। आजादी के पहले ये सदन का स्थान हुआ करता था। आजादी के बाद इस संसद को पहचान मिली। इस इमारत के निर्माण का फैसला विदेशी सांसदों का था लेकिन ये बात हम न कभी भूल सकते हैं कि इसके निर्माण में पसीना देशवासियों का लगा है, परिश्रम और पैसे भी मेरे देश के लोगों के लगे हैं।’ पीएम ने कहा, ‘इस सदन से विदाई लेना एक बेहद भावुक पल है, परिवार भी अगर पुराना घर छोडक़र नए घर जाता है तो बहुत सारी यादें उसे कुछ पल के लिए झकझोर देती हैं। हम इस सदन को छोडक़र जा रहे हैं, तो हमारा मन मस्तिष्क भी उन भावनाओं से भरा हुआ है और अनेक यादों से भरा हुआ है। उत्सव-उमंग, खट्टे-मीठे पल, नोक-झोंक इन यादों के साथ जुड़ा है।’ पीएम मोदी ने संसद के पुराने भवन में 50 मिनट की आखिरी स्पीच दी। पीएम ने इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्रियों को याद करते हुए कहा-ये वो सदन है जहां पंडित जवाहरलाल नेहरू के स्ट्रोक ऑफ मिडनाइट की गूंज हम सबको प्रेरित करती है। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में बांग्लादेश के मुुक्ति संग्राम का आंदोलन भी इसी सदन ने देखा था। उन्होंने कहा, सदन ने कैश फॉर वोट और 370 को भी हटते देखा है। वन नेशन वन टैक्स, जीएसटी, वन रैंक वन पेंशन, गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण भी इसी सदन ने दिया। अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने संसद में काम करने वाले कर्मियों का भी शुक्रिया जताया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, इसी भवन में दो साल 11 महीने तक संविधान सभा हुई और उसने देश को मार्गदर्शक संविधान दिया। इन 75 वर्षों में देशवासियों का संसद पर विश्वास बढ़ता ही गया है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत यही है कि लोगों का इस संस्था के प्रति विश्वास अटूट रहे। पंडित नेहरू जी, शास्त्री जी, अटल जी, मनमोहन सिंह तक एक बहुत बड़ी शृंखला ने सदन में सेवा की और देश को नई दिशा दी। आज उनका गुणगान करने का भी समय है। सरदार वल्लभ भाई पटेल, लोहिया जी ने देशवासियों की आवाज को ताकत देने का काम इस सदन में किया है। उमंग, उत्साह के पल के बीच में कभी सदन की आंख से आंसू भी बहे और देश के तीन प्रधानमंत्रियों को अपने कार्यकाल में ही खोने का दुख भी झेलना पड़ा। तब इस सदन में अश्रुपूर्ण विदाई दी थी। आज जब हम इस सदन को छोडक़र नए भवन में जाने वाले हैं तो बहुत कुछ याद आ रहा है। जब मैं पीएम बना था तो मैंने सदन की सीढिय़ों पर शीश झुकाया था। प्लेटफॉर्म पर रहने वाला संसद पहुंच गया। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी ये देश इतना सम्मान और प्यार देगा। समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधि इस सदन में नजर आता है और समाज के सभी तबकों के लोग हैं। अनेक संकटों और परेशानियों के बावजूद सांसद, संसद में आए हैं और शारीरिक परेशानी के बावजूद अपने जनप्रतिनिधि कर्तव्य का पालन किया।
गौरतलब है कि नये संसद भवन पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहराने के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि यह एक ऐतिहासिक क्षण है भारत युग परिवर्तन का साक्षी बन रहा है। दुनिया भारत की ताकत, शक्ति और योगदान को पूरी तरह से पहचानती है। राष्ट्रीय ध्वज लहराने के समय लोकसभा के अध्यक्ष ओम प्रकाश बिरला ने धनखड़ का साथ दिया।
पुराने संसद भवन का उद्घाटन 18 जनवरी 1927 को हुआ था, पुराने संसद भवन को लेकर प्रसिद्ध वास्तुकार एजीके मेनन ने कहा, ‘संसद भवन सिर्फ एक प्रतिष्ठित इमारत नहीं है, यह इतिहास और हमारे लोकतंत्र का भंडार है।’ उन्होंने कहा कि यह ‘सेंट्रल विस्टा’ पुनर्विकास परियोजना का हिस्सा है। इस ऐतिहासिक इमारत ने देश में आजादी का सवेरा होते देखा, इसके कक्षों ने 15 अगस्त, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ऐतिहासिक ‘नियति से साक्षात्कार’ भाषण की गूंज सुनी और यहां संविधान सभा की बैठक हुई।
पुराने संसद भवन की 95 वर्ष की यात्रा के साथ स्वतंत्रता संग्राम से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति और उसके बाद की एक नहीं अनेक ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हुईं हैं, जिसने देशवासियों के भाग्य को प्रभावित किया है। पुराने संसद भवन के साथ अगर भारत का अतीत जुड़ा हुआ है तो नया संसद भवन हमारे वर्तमान की कहानी कह रहा है और भारत के भविष्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाने जा रहा है।
डॉ. वा.मो. आठले ने पुस्तक ‘इतिहास और संस्कृति’ में लिखा है, ‘मनुष्य पहले सोचता है, फिर तदनुसार व्यवहार करने का प्रयास करता है। उसकी सोच उसके व्यक्तित्व का प्रतीक होती है और व्यवहार कृतित्व की। समाज का क्रियाकलाप भी इसी प्रकार चलता है। संस्कृति उसका व्यक्तित्व होती है और इतिहास कृतित्व। जब मनुष्य का व्यवहार उसके वचन से हटता है, या हटता प्रतीत होता है तो या तो हम उसको धूर्त मानते हैं या पागल। इसी प्रकार जहां-जहां इतिहास संस्कृति से हटा हुआ प्रतीत होता है तो या तो यह समाज का भटकाव है या पतन।’ सुक्ति कहती है-महान व्यक्ति जो सोचता है, वही कहता है और वही करता है, जबकि दुरात्मा सोचता कुछ है, कहता कुछ और है और करता तीसरा ही है। इस प्रकार इतिहास और संस्कृति परस्परावलंबी है। वे एक दूसरे को प्रेरणा भी देते हैं तथा एक दूसरे से प्रेरणा पाते भी हैं।
भारतवासी ही नहीं आज सारा विश्व देख रहा है जब कोई व्यक्ति अपनी संस्कृति से ओतप्रोत होकर तथा निस्वार्थ-भाव से कर्म करता है तो उससे वर्तमान तो मजबूत होता ही है भविष्य भी उज्ज्वल होता है।
आज के इस शुभ दिन और नये संसद भवन के लिए प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगियों के साथ-साथ समूह भारतवासियों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनायें। 

झुकते नवजोत सिद्धू

– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)  

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