विश्व में आजकल सर्वत्र बेरोजगारी को लेकर चिन्ता व्यक्त की जा रही है। बेरोजगारी बहस का मुददा् बन चुकी है। 2०14 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी एक करोड़ युवाओं को प्रतिवर्ष रोजगार देने का वायदा किया था। यही वायदा विपक्षी दलों का एक बडा मुदद बन चुका है।
इसके बचाव में नरेन्द्र मोदी तथा उनके समर्थक यह कहते हैं कि उन्होंने अपना वायदा पूरा किया है। सरकारी नौकरियों के साथ मुद्रा योजना में सरकार के द्वारा कई लाख करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि युवाओं को उपलब्ध करायी है जिससे कई करोड़ युवाओं को स्वयं रोजगार उत्पन्न कराया गया है जिसमें करोड़ों युवाओं को उन्होंने अपने व्यवसायों में रोजगार दिया है।
क्या कांग्रेस के 65 वर्ष के शासन के कार्यकाल में बेरोजगारी नहीं थी? फिर क्या नरेन्द्र मोदी के एक दो कार्य काल में बेरोजगारी का उन्मूलन हो सकता है, बेरोजगारी कम या अधिक ही हो सकती है। प्रत्येक नगर में ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे जहां पकोड़े बेचते बेचते लोग बड़े बड़े आयकर दाता बन कर रेस्टोरेंटों के मालिक बन कर हजारों युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं। क्या स्वयं रोजगार रोजगार नहीं है। उत्तरप्रदेश के मुख्य मंत्री बनने पर माननीय अखिलेश यादव जी ने जब बेरोजगारी भत्ते की घोषणा की थी तो अच्छी भली दुकान चला कर लाखों रुपये कमाने वाले युवा व युवतियां भी रोजगार कार्यालयों के सामने प्रात: से सांय तक पंक्तियों में लगे रहे, अत: रोजगार की परिभाषा सरकार को पुन: निर्धारित करनी पड़ेगी।
वर्तमान समय में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ऑटोमेशन व रोबोटिक्स आदि आधुनिक तकनीक से होने वाले बदलावों व बढ़ती जनसंख्या ने रोजगार प्रणाली और व्यवस्था को बदल कर रख दिया है। भारत में तो जनसंख्या पर प्रतिबंध करने की बात करने से भी राजनीतिक दल परहेज कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा व कांग्रेस अथवा कोई भी राजनीतिक दल कितनी भी कोशिश कर ले, बेरोजगारी की समस्या को दूर नहीं कर सकता तथा बेरोजगारी राजनीतिक मुदद बनता रहेगा। युवाओं को रोजगार प्राप्त करना दूर की कौड़ी ही साबित होता रहेगा। कम्प्यूटर प्रणाली व ऑटोमेशन से रोजगार के अवसर कम हो रहे है तथा शिक्षा प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन की मांग तेज होती जा रही है ताकि शिक्षित युवा डिग्रियों के साथ साथ पर्याप्त कौशल भी प्राप्त कर सकें जो उन्हें गरिमापूर्ण जीविका प्राप्त करने के लायक बना सके यानी वह पूरी तरह से रोजगार के योग्य हों।
देश में माना यह जाता है कि शिक्षा से ही ठीक ठाक रोजगार प्राप्त किया जा सकता है, इसलिए सभी को सस्ती व अच्छी शिक्षा दी जानी चाहिए। शिक्षा ग्रहण करते करते भी युवा को रोजगार प्राप्त कर धनार्जन का अधिकार होना चाहिए जबकि भारत में एक दो विश्वविद्यालय इस पर प्रतिबंध लगाते है कि पढ़ाई के दौरान छात्र कोई लाभदायक कार्य करे। गांवों, नगरों व शहारों से आने वाले वंचित व निम्न सामाजिक क्षेत्र के छात्रों को पार्ट टाइम जॉब का अधिकार तो पढ़ाई करते करते होना ही चाहिए जिससे वह जरुरत का खर्च निकाल सके। छात्रों को खाली समय में कुछ अन्य कार्य या पार्ट टाइम कार्य करना चाहिए जिससे वह दंगे, फसादों व अनुशासनहीनता के कार्यों से बच सके।
शिक्षा किसी भी समाज में चेतना और सशक्तिकरण का सबसे शक्तिशाली हथियार होता है। वर्तमान समय में भारत में शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। भारत में अस्सी प्रतिशत से अधिक युवा शक्ति मध्यम वर्गीय या निम्न वर्गीय परिवारों से आते हैं। वहां पर शीघ्र से शीघ्र नौकरी प्राप्त करने का भारी दबाव सभी पर रहता है। शिक्षा ग्रहण करते समय रोजगार करने से रोकना कतई न्यायसंगत व तर्कसंगत नहीं माना जा सकता है। भारत में एम. फिल., पी. एच. डी. करते समय छात्रों की आयु 25 वर्ष से भी ऊपर हो जाती है तथा परिवार के दबाव में शादी भी कर लेते हैं जिससे उन पर धन कमाने का दबाव बना रहता है। इस दबाव के कारण उन छात्रों की शोध के प्रति रुचि प्रभावित हो जाती है और शोध का स्तर गिर जाता है। यही कारण है कि एशिया के स्तर तक भी भारत बहुत अधिक शोधकर्ता उत्पन्न नहीं कर पाया है।
इस समस्या से निपटने हेतु उच्च शिक्षा व शोध में अच्छी छात्रवृत्ति का प्रबंध सरकार को करना चाहिए अथवा फिर इतनी नौकरियों का प्रबंध करना होगा जिससे ये सभी छात्र इस बात के लिए आश्वस्त हो सकें कि अपनी शिक्षा पूरी करते ही इनके पास उचित रोजगार होगा और इसलिए शिक्षा के दौरान उन्हें रोजगार की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
सरकार के लिए आर्थिक सुधारों को देखते हुए शिक्षा में इस प्रकार का सुधार करना बहुत मुश्किल कार्य है। ‘शिक्षा और रोजगार’ को ‘शिक्षा बनाम रोजगार’ में नहीं बदलने देना है। यदि भारत सरकार उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में चीन से मुकाबला करना चाहती है तो उसको अपनी पुरानी व्यवस्था व नीतियों में बदलाव करना चाहिए तथा जनसंख्या वृद्धि पर बिना किसी राजनीति किये सभी राजनीतिक दलों को जनसंख्या वृद्धि पर प्रतिबंध करने के लिए आगे आना चाहिए वरना बढ़ती जनसंख्या देश के विकास से लोगों की बढ़ी हुई आय को चट करती रहेगी और बेरोजगारी इसी प्रकार द्रुत गति से बढ़ती रहेगी।
डा. सूर्य प्रकाश अग्रवाल
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