भारत नेपाल को कितनी बिजली निर्यात करता है, इसकी जानकारी भारतीय विदेश मंत्रालय ने 22 मार्च, 2022 को एक पीडीएफ के ज़रिये साझा की थी। पिछले साल तक भारत से 600 मेगावाट विद्युत नेपाल को भेजी जा रही थी, ताकि उसे ऊर्जा संकट से राहत मिल सके। 1 जून, 2023 को काठमांडो पोस्ट ने ‘पावर शॉर्टेज कॉन्टीन्यू•ा ए•ा जेनरेशन स्लंप्स’ शीर्षक से ख़बर दी, जिससे जानकारी मिली कि नेपाल विद्युत प्राधिकरण (एनईए) तराई के इलाक़ों में लगी फैक्टरियों को समय पर बिजली नहीं दे पा रहा है। उसका कारण जलस्तर का कम होना है। ख़बर में यह भी बताया कि भारत से जो बिजली नेपाल आयात कर रहा है, वो महंगी है। अब बताइये, जिस देश में बिजली का टोटा पड़ा हो, वो बांग्लादेश विद्युत निर्यात के लिए भारत से कॉरिडोर मांग रहा है। यह बात गले नहीं उतरती।
एनईए के प्रवक्ता सुरेश भट्टराई बताते हैं कि नेपाल में कुल जलविद्युत उत्पादन 700 से 800 मेगावाट है। कोयला, डीज़ल और अक्षय ऊर्जा, सारा कुछ मिलाकर 1300 मेगावाट बिजली का उत्पादन नेपाल कर पा रहा है। तराई के औद्योगिक क्षेत्रों में इन दिनों छह घंटे की बिजली कटौती नेपाल विद्युत प्राधिकरण कर रहा है। एक दिलचस्प ख़बर काठमांडो पोस्ट ने ही 17 मई, 2023 को प्रकाशित की। नेपाल-बांग्लादेश ने सचिव स्तर पर ऊर्जा सहयोग के वास्ते पांचवीं बैठक में एक समझौते के तहत तय किया कि नेपाल, बांग्लादेश को 40 से 50 मेगावाट बिजली निर्यात करेगा। भूपरिवेष्ठित राष्ट्र नेपाल को सप्लाई कॉरिडोर देने के लिए नई दिल्ली ने पहले से सहमति दे दी थी।
यह क्या अजीब नहीं लगता कि जिस देश में अपनी घरेलू ज़रूरतें पूरी करने के वास्ते बिजली नहीं है, वो एक तीसरे देश में विद्युत निर्यात करने के लिए अनुबंध कर रहा है? ‘घर में नहीं है दाने, अम्मा चली भुनाने’, वाली कहावत के हवाले से प्रचंड के आलोचक उन पर तंज़ कर सकते हैं, लेकिन उसका रास्ता लगता है प्रधानमंत्री मोदी ने निकाल लिया है। ऐसी परिकल्पना की गई है कि जीएमआर, टाटा पावर, इप्पान, एसजेवीएन लिमिटेड जैसी भारतीय कंपनियों के सहयोग से नेपाल में जल विद्युत उत्पादन की जितनी परियोजनाएं संपूर्ण होंगी, अगले दस वर्षों में ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं, दक्षिण एशिया का निर्यातक देश नेपाल हो जाएगा।
नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल में ऊर्जा, अधोसंरचना, हवाई मार्ग, अमलेखगंज से चितवन तक पेट्रोलियम पाइप लाइन, उर्वरक कारखाना जैसी परियोजनाओं की झड़ी लगा दी है। कट्टर कम्युनिस्ट नेता प्रचंड ऊर्जा कूटनीति के साथ-साथ रामायण सर्किट के लिए सहमत हो जाएं, बड़ी बात है। इससे संकेत मिलता है कि 2024 चुनाव को ध्यान में रखकर सब कुछ तय हुआ है, जिसका प्रभाव नेपाल से सीमा साझा करने वाले पांच भारतीय प्रदेशों पर पड़ेगा।
दोनों नेताओं ने सीमा संबंधी विवादित विषयों की समीक्षा करने, और उसे आने वाले दिनों में सुलझा लेने की बात कहकर नेपाल में माहौल बना रहे विरोधियों का मुंह बंद करने का प्रयास किया है। प्रचंड के नई दिल्ली आने से पहले सीमा विवाद पर भी बहस शुरू हो गई थी। नेपाली पक्ष का बरसों से दावा रहा है कि कालापानी, लिपुलेख, लिंपियाधुरा में 372 वर्ग किलोमीटर, गंडक क्षेत्र स्थित सुस्ता में 145 वर्ग किलोमीटर और शेष 69 स्थानों में लगभग 89 वर्ग किलोमीटर पर अतिक्रमण किया गया है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जब पहली बार नेपाल गये थे, इसका अहद किया गया था कि सीमा विवाद को स्थाई रूप से हम सुलझा लेंगे। इस ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ के नौ वर्ष हो चुके हैं।
हैदराबाद हाउस में दोनों नेताओं ने ‘ईपीजी’ (इमीनेंट पर्सन्स ग्रुप) की रिपोर्ट की चर्चा नहीं की। उभयपक्षीय विवादों को सुलझाने के वास्ते 2016 में केपी शर्मा ओली और नरेंद्र मोदी भारत-नेपाल के प्रसिद्ध लोगों का आठ सदस्यीय समूह बनाने पर सहमत हुए थे, जिसका नाम रखा गया, ‘ईपीजी’ (इमीनेंट पर्सन्स ग्रुप)। नेपाल की ओर से इस समूह के संयोजक हैं दिल्ली में नेपाल के राजदूत रह चुके एंबेसडर भेख बहादुर थापा, और भारत में भगत सिंह कोश्यारी इसका नेतृत्व कर रहे थे।
‘ईपीजी’ को सुझाव देना था कि दोनों देशों के बीच नागरिकों की आवाजाही, 1950 संधि के विवादित अनुच्छेदों को संशोधित करने का रास्ता क्या है। ‘ईपीजी’ की रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है। रिपोर्ट प्रधानमंत्रियों को सौंपी गई अथवा नहीं? यह भी अंधेरे में है। मगर, समूह के कुछ सदस्य ‘ऑफ द रिकार्ड’ बातचीत में मानते हैं कि तीन मुख्य बिन्दुओं पर सहमति है। पहला, भारत-नेपाल संधि-1950 में बदलाव हो। दूसरा, दोनों देशों की आवाजाही में लोगों के पहचान पत्र दिखाना अनिवार्य किये जाएं। तीसरा, नेपाल में काम करने के वास्ते वर्क परमिट की व्यवस्था लागू हो।
40 साल पहले नेपाल के भूगोलविद और योजना आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. हर्क बहादुर गुरूंग यह निष्कर्ष दे गये थे कि 1950 संधि की धाराएं बदली जाएं। पासपोर्ट और वर्क परमिट लागू हो। इसी लाइन पर नेपाली कम्युनिस्ट भी चाहते थे कि 1950 संधि के अनुच्छेद 2 (जिसमें क्षेत्रीय अखंडता की चर्चा है), अनुच्छेद 5 का रद्दोबदल कर नेपाल हथियारों का आयात करे। वो यह भी चाहते थे कि अनुच्छेद 6 से आर्थिक बाध्यताएं हटे। अनुच्छेद 7 को संशोधित करें जिससे भारतीय मूल के लोगों को वर्क परमिट के आधार पर नेपाल में काम कर सकने के लिए बाध्य कर सकें। गुरूंग कमीशन की रिपोर्ट लगभग वैसी ही थी, जैसा नेपाल के धुर राष्ट्रवादी और वहां के कम्युनिस्ट चाहते थे। यदि उसी लाइन पर दोनों मुल्कों के ‘ईपीजी’, ने रिपोर्ट दी है, तो उसे लागू कराने का मतलब होगा, तराई के दोनों तरफ हंगामा मचना। 2024 चुनाव के साल भर पहले प्रधानमंत्री मोदी इस तरह का जोखिम लेना नहीं चाहेंगे।
हैदराबाद हाउस के साझा वक्तव्य में नेपाल में अग्निपथ योजना जैसे विवादित विषय को भी दूर रखने का प्रयास दोनों नेताओं ने किया है। इस वक्त 34 हजार नेपाली युवा भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में तैनात हैं। नौ माह पहले अग्निपथ योजना के तहत 1300 युवाओं की भर्ती की जानी थी। मगर, नेपाल में सवाल खड़ा हो गया कि 4 साल के बाद इनका क्या होगा? गोरखा रिक्रूटमेंट डिपो गोरखपुर, नेपाल के बुटवल और धरान में भर्ती रैली की तारीख की जो घोषणा की थी, नेपाल सरकार की ओर से कोई जवाब न मिलने के कारण रैली टालनी पड़ी थी। सबकी आंखें हैदराबाद हाउस पर लगी थीं कि अग्निपथ योजना के तहत भर्ती वाले विषय पर दोनों राष्ट्र प्रमुख क्या निर्णय लेते हैं। प्रचंड खुद नहीं चाहते थे कि कोई किरकिरी हो।
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।
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