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डाक्टर हेडगेवार के कार्य का वर्तमान स्वरूप

डा. केशव बलीराम हेडगेवार जी के 1889 से 1940, मात्र 51 वर्षों के जीवन प्रवास में किए कार्य की उनके शारीरिक रूप से अलग होने के बाद की वर्तमान स्थिति देख कर उनकी दूरदृष्टि की कल्पना सहज ही की जा सकती है। इस प्रवास के अंतिम 25 वर्ष राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना के पश्चात के हैं। जिन दिनों लोग हिन्दू हितों की रक्षा के लिए बोलने में भी घबराते थे, हिन्दू कहलाने से सकुचाते थे, उन्हीं दिनों डा. हेडगेवार जी अत्यंत आत्मविश्वास से बोल रहे थे, ‘हां, मैं कहता हूं, यह हिन्दू राष्ट्र है।’ डाक्टर जी द्वारा सन् 1925 में शुरू किया हुआ संघ अपने शताब्दी वर्ष 2024-25 में मनाने जा रहा है और आज भारत के कोने-कोने में पहुंचा है। इसी के साथ विश्व के उन सभी देशों में, जहां हिन्दू अल्पसंख्यक भी क्यों न हों, रहते हैं, उन सभी देशों में संघ के स्वयंसेवक हैं।
और यह सज्जन शक्ति डाक्टर हेडगेवार जी को अपेक्षित ऐसे हिन्दू संस्कृति के मूलाधार राष्ट्र को वैभवशाली, समृद्ध और संपन्न बनाने में जुटी है। बाल्यकाल से ही डा. हेडगेवार प्रखर देशभक्त थे, साथ ही प्रत्यक्ष कार्य करने वाले कृतिशील कार्यकत्र्ता थे। विशाल भारतवर्ष पर राज करने वाली अंग्रेजी सत्ता को उखाडक़र फैंकना उनके जीवन का ध्येय था।

इसी ध्येय का अनुसरण करते हुए उन्होंने अपनी महाविद्यालयीन शिक्षा के लिए कोलकाता शहर चुना। वह बंगभंग आंदोलन के दिन थे। कलकत्ता क्रांतिकारियों का केंद्र बना था। हेडगेवार जी क्रांतिकारियों की ‘अनुशीलन समिति’ के सदस्य बने। ‘कोकेन’ नाम से क्रांतिकारियों में जाने जाते थे।
इस क्रांतिकारी आंदोलन को उन्होंने अत्यंत निकट से देखा। किंतु ‘इस रास्ते से स्वराज मिलेगा क्या?’ यह एक प्रश्न तथा साथ ही दूसरा महत्व का प्रश्न ‘स्वतंत्रता मिलने के बाद हमारे देश की रचना कैसी होनी चाहिए?’ यह भी उनको सताए जा रहा था।
हमारा देश जिन कारणों से गुलाम हुआ, उन कारणों को दूर करते हुए नया स्वतंत्र भारत कैसा होना चाहिए, इस पर वह सतत चिंतन करते थे। किंतु उनके प्रश्नों के उत्तर उनको नहीं मिल रहे थे। उन्होंने कांग्रेस में रहकर काम किया। पहले सदस्य बने, फिर पदाधिकारी।
अत्यंत सक्रियता से उन्होंने कांग्रेस के आंदोलनों में हिस्सा लिया। दो बार जेल गए। किंतु उनको समझ में आया कि कांग्रेस में, या अन्य सभी प्रवाहों में, इस देश का मूलाधार हिन्दू उपेक्षित हो रहा है। मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर हिन्दुओं पर जबरदस्त दबाव बनाया जा रहा है।
स्वतंत्रता मिलने पर स्वतंत्र भारत में हिन्दुओं की स्थिति, अर्थात देश की स्थिति कैसी रहेगी, इसका भीषण और भयानक चित्र उनको सामने दिख रहा था। वर्ष 1925 में विजयादशमी के दिन, अर्थात रविवार, 27 सितम्बर को नागपुर में डाक्टर हेडगेवार जी के घर पर संघ प्रारंभ हुआ। यह संगठन मुस्लिम आक्रामकता के प्रतिक्रिया के स्वरूप बना था।

डॉक्टर साहब की सोच बहुत दूर की थी। यह राष्ट्र संपन्न होना चाहिए, समृद्ध होना चाहिए, शक्तिशाली बनना चाहिए और इसलिए इस देश की जो मूल अस्मिता है, पहचान है, जो हिन्दू आचार, विचार और परंपरंओं पर आधारित है, वह सशक्त और बलशाली होना चाहिए। यह तभी संभव है, जब हमारा देश स्वतंत्र होगा। इसीलिए संघ का प्रारंभिक ध्येय इस देश को स्वतंत्र करने का था।
डॉक्टर जी ने जब संघ प्रारंभ किया, तब ‘हिन्दुत्व’ शब्द प्रचलन में नहीं था। सावरकर जी ने 1927 से इस शब्द का प्रयोग करना प्रारंभ किया। इसके पहले स्वामी विवेकानंद जी ने हिन्दुत्व के लिए ‘हिन्दुइज्म’ शब्द का प्रयोग किया था। ‘इज्म’ यानी वाद अर्थात ‘हिन्दूवाद’। डॉक्टर जी ने ‘हिन्दुत्व’ के समानार्थी शब्द के रूप में ‘हिन्दू हुड’ शब्द का प्रयोग किया है।

मद्रास के डा. नायडू ने तमिलनाडु में हिन्दू महासभा कांफ्रैंस का आयोजन किया था। ‘इस कांफ्रैंस में डाक्टर जी को उपस्थित रहना चाहिए’, ऐसा आग्रह करने वाला पत्र डाक्टर नायडू ने डाक्टर जी को लिखा। किंतु स्वास्थ्य ठीक न होने से डाक्टर जी बिहार के राजगीर में गए थे अर्थात उनका मद्रास जाना संभव नहीं था। इस संदर्भ में अपनी मृत्यु से 3 महीने पहले, अर्थात 1940 के 17 मार्च को, डाक्टर जी ने मद्रास के डाक्टर नायडू को पत्र लिखा। विभिन्न वैचारिक प्रवाहों में, संस्थाओं में, राजनीतिक दल में कार्य करने के कारण उनके विचारों में पारदर्शिता और स्पष्टता थी। ‘क्या करना है’ यह उनको अवगत था। इसलिए संघ स्थापना के बाद उनके 15 वर्षों के कालखंड में, और बाद में भी, संघ पर अनेक संकट आने के बावजूद संघ बढ़ता ही रहा।
संघ का उद्देश्य हिन्दू समाज का संगठन कर संपूर्ण समाज को सक्षम बनाना है। इसलिए ‘समाज ही सब कुछ करेगा’ यह भूमिका पहले से आज तक कायम है. यही संघ के यश का सूत्र भी रहा है। संघ ने सही अर्थों में हिन्दू समाज का सक्ष्मीकरण करना ही डाक्टर हेडगेवार जी का अभिप्रेत था। हिन्दुओं का संगठन यह असंभव कल्पना है, ऐसा पहले बोला जाता था। किंतु डाक्टर हेडगेवार जी ने इस बात को गलत सिद्ध करके बताया। यह संगठन, डाक्टर जी की मृत्यु के पश्चात भी 83 वर्ष सतत अग्रसर ही हो रहा।
सुखदेव वशिष्ठ

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