अमेेरिकी कमीशन ऑफ इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को धार्मिक आजादी नहीं है। विरोध जताने वालों को ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा तक दी जा रही है। कमीशन ने रिपोर्ट के माध्यम से अमेरिका के विदेश विभाग को सिफारिश की है कि पाकिस्तान को ‘कंट्री ऑफ कंसर्न’ सूची में शामिल किया जाए। इस सूची में उन देशों को रखा जाता है, जहां मानवाधिकारों का लंबे समय से हनन होता आया है और किसी विशेष समुदाय के लोगों की धार्मिक आजादी व मौलिक अधिकार छीन लिए जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में कई कानून अल्पसंख्यकों के दमन के लिए बनाए गए हैं। रिपोर्ट बताती है कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को लगातार टारगेट किया जा रहा है।
पाकिस्तान में 2022 में 4 चर्चों पर हमले किए गए। 2022 में खानेवाल में मानसिक रूप से बीमार ईसाई युवक को भीड़ ने ईशनिंदा का आरोप लगाकर मार डाला था। पाकिस्तान ने नसरपुर और सिंध में 2022 में कट्टरपंथियों की भीड़ ने मियां मिट्ठू के कहने पर दो हिंदू गांवों में हमला किया और वहां हिन्दू परिवारों के घरों और मंदिरों को तोड़ दिया। 2022 में गुरुद्वारे पर हमला कर मस्जिद में तब्दील कर दिया गया। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय के लोगों को विशेष तौर पर टारगेट बनाते हुए अपर सिंध में धर्मांतरण की फैक्टरी चलाई जा रही है। इसका सरगना मियां अब्दुल हक उर्फ मियां मिट्ठू है। धर्मांतरण के लिए परेशान किया जाता है। अगर अल्पसंख्यक परिवार विरोध करता है तो ईशनिंदा का आरोप लगाकर चुप कराया जाता है। इस कानून के तहत मौत तक की सजा संभव है। पाकिस्तान में एक लीगल आर्डिनेंस पास करके अहमदिया मुसलमानों को खुद को मुसलमान कहने, आम मस्जिद में नमाज अदा करने व खुद को मुसलमान बताने पर रोक लगा दी गई है। अगर कोई इसका उल्लंघन करता है तो उसे उम्रकैद या मौत की सजा तक दी जा सकती है। अहमदिया आम कब्रिस्तान में शव नहीं दफना सकते। इस साल ऐसी 30 कब्रों को तबाह कर दिया गया है।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर अमेरिकी कमीशन ने जो बात कही है वह ऐसा सत्य है जिसे कोई झुठला नहीं सकता। धरातल का सत्य यह है कि अल्पसंख्यकों की जो स्थिति पाकिस्तान में है वही स्थिति करीब-करीब सभी इस्लामिक देशों में है। इस्लामिक देशों में अल्पसंख्यक हमेशा दबाव में ही रहते हैं। विश्व में इस्लाम के नाम पर जेहाद करने वाले अपने देशों में अन्य समुदायों के लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है।
विश्व स्तर पर अशांति का एक बड़ा कारण इस्लामिक देशों की यही रीति-नीति ही है। भाईचारे की बात करने वाले इस्लामिक देश अन्य समुदायों के लोगों को अपने देश में दबाकर रखते हैं और जहां दूसरे समुुदाय के लोग बहुमत में हंै वहां इस्लाम के नाम जेहाद की घोषणा कर आतंक फैलाते हैं। यह दोहरे मापदंड ही आज एक बड़ी समस्या बनकर विश्व सम्मुख खड़े हैं। इस्लामिक देशों को अपने अल्पसंख्यकों की बदहाल स्थिति को लेकर आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है।
वर्तमान में कट्टरपंथी राह पर चलना पतन का कारण ही माना जाएगा। विश्व शांति के लिए भी आवश्यक है कि एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान किया जाए। इस्लामिक देश अपने अल्पसंख्यकों के प्रति सकारात्मक सोच व व्यवहार रखें तो विश्व में धर्म के नाम पर हो रहा संघर्ष कम हो जाएगा।
– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)
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