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बेटियों के उत्सव में हिंदी का उत्साह

परीक्षा परिणामों के इस मौसम में दो-तीन सुखद पहलू सामने आए हैं। एक तो बेटियों ने साबित किया है कि अगर मौका और मंच मिल जाये तो कामयाबी का सातवां आसमान छूने में वह औरों के लिए नजीर साबित हो सकती हैं। दूसरा, अंग्रेजी का वर्चस्व टूटा है और तीसरा, भारत की शीर्ष प्रशासनिक सेवा परीक्षा में हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों ने नयी इबारत लिखी और भविष्य के लिए शुभ संकेत दिए। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से लेकर हरियाणा, पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों की 10वीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में बेटियां अव्वल रहीं। इसके बाद संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा 2022 के परिणामों में भी इस देश की बेटियों ने अपने बुलंद इरादों को जता दिया। इसमें शीर्ष 25 उम्मीदवारों में 14 युवतियां हैं। यही नहीं, टॉप 5 में भी चार लड़कियों ने अपना स्थान सुनिश्चित किया। कुल 933 अभ्यर्थियों में से 320 बेटियों ने शीर्ष प्रशासनिक सेवा में शान से जाने का रास्ता पक्का कर लिया।

तमाम बंधनों के बावजूद बेटियों को मिली अपार सफलता के इस माहौल में कुछ चर्चा भाषायी बंधन की भी जरूरी है। इस बंधन को तोडऩे की शुरुआत तो कुछ वर्ष पहले ही हो चुकी थी। एक समय था जब अंग्रेजी माध्यम में ही सिविल सेवा की परीक्षा में शामिल हुआ जा सकता था, लेकिन जब इसकी अनिवार्यता खत्म हुई तो अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के साथ ही हिंदी माध्यम में भी परीक्षार्थियों ने सफलता हासिल की। यूपीएससी के हाल में घोषित परिणामों पर गौर करें तो इस बार सर्वाधिक 54 उम्मीदवार हिंदी माध्यम से सफल हुए हैं। यही नहीं, सोने पे सुहागा यह कि इनमें से 29 अभ्यर्थियों का वैकल्पिक विषय हिंदी साहित्य था। यानी न केवल हिंदी माध्यम सफलता का मानक बना, बल्कि हिंदी साहित्य बतौर एक विषय भी इस शीर्ष प्रतियोगी परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ। सभी को अलग-अलग भाषा सीखने में आगे रहना चाहिए, लेकिन अपनी मातृभाषा में चीजों को समझने, सीखने और अभिव्यक्त करने में जो सहजता होती है, वह किसी थोपी हुई भाषा में नहीं। नयी शिक्षा पद्धति में यही दावा किया गया है कि मातृभाषा में अध्ययन-अध्यापन को प्रमुखता दी गयी है। हालांकि इस मसले पर अनेक किंतु-परंतु हैं। मसलन, वैज्ञानिक शब्दावली और गणित के सूत्रों का अनुवाद संबंधी। फिलवक्त तो हिंदी में उत्साहजनक परिणाम पर चर्चा करना ही मुनासिब होगा। असल में, आज वह भ्रम भी टूट चुका है जिसमें कहा जाता था कि आईएएस बनना है तो अंग्रेजी भाषा अनिवार्य है। इस अनिवार्यता के चलते कुछ लोग परीक्षा में शामिल ही नहीं हो पाते थे। कुछ रिपोट्र्स में यह खुलासा भी हुआ कि सिविल सेवा परीक्षा में वर्ष 2012 में पहली बार हिंदी की शुरुआत के बावजूद कम ही लोग इस माध्यम को चुनते थे। कारण भाषायी संकोच और असहज स्थिति। लेकिन धीरे-धीरे हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों ने न केवल सफलता हासिल की, बल्कि हिंदी साहित्य को बतौर वैकल्पिक विषय भी चुना। सुखद संयोग देखिये कि एक साल पहले हिंदी भाषी सफल अभ्यर्थियों की संख्या 24 थी जो इस बार दोगुने से भी अधिक हो गयी।

सर्वविदित है कि आज हिंदी बड़े वर्ग की भाषा है। भारतीय समाज में जहां हिन्दी को संपर्क की भाषा कहा जा सकता है, वहीं हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि भारत ही ऐसा एकमात्र देश है जिसकी पांच भाषाएं विश्व की 16 प्रमुख भाषाओं की सूची में शामिल हैं। इन पांच में हिंदी तो है ही। विश्व के विभिन्न देशों में हिंदी महोत्सवों को मिली अपार सफलता इस भाषा की स्वीकार्यता और इसकी बढ़ती लोकप्रियता की ओर इंगित करती है। आंकड़ों के मुताबिक चीनी, अंग्रेजी के बाद हिंदी भाषा ही है जिसको बोलने, समझने वाले विश्व में सर्वाधिक हैं। यही नहीं त्रिनिदाद, मॉरिशस, फिजी, इंडोनेशिया, मलेशिया और गुयाना जैसे देशों में हिंदी पर व्यापक शोध हो रहे हैं। नये शब्द गढ़े जा रहे हैं और कई प्रयोग हो रहे हैं। अनेक देशों में हिंदी भाषा में पत्रिकाएं निकल रही हैं।

बेशक हिंदी का यह विस्तार और हिंदी भाषी अभ्यर्थियों की सफलता उत्साहजनक है, लेकिन हिंदी के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आज भी विज्ञान से लेकर अन्य विषयों में अनेक ऐसी शब्दावलियां हैं जिनके लिए अंग्रेजी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। यूं तो हिंदी भाषा की यही खूबसूरती है कि इसने अनेक अन्य भाषाओं के शब्दों को भी आत्मसात कर लिया है, लेकिन इसे सहज और प्रवाहमयी बनाने के लिए नये प्रयोगों की अभी भी दरकार है। कंप्यूटर के इस युग में फोंट संबंधी एकरूपता आना हिंदी के डिजिटल विकास में मील का पत्थर ही साबित हुआ है।
हिंदी भाषा में मिली कामयाबी के इस खुशनुमा माहौल के बीच ही बेटियों की सफलता ने भी फिजां में उमंग की रंगत को घोला है। आज विषम परिस्थितियों में भी बेटियों ने चहुंओर जो मुकाम हासिल किया है, वह काबिल-ए-गौर है। बोर्ड या यूपीएससी परीक्षा ही नहीं, सैन्य सेवा के अलावा खेलों में भी कीर्तिमान स्थापित किया है। बेटियों के नाम इतने उत्साहजनक परिणाम तो तब हैं जब आज भी यदा-कदा बेटियों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार की खबरें आती हैं। घर की चौखट से लेकर कदम-कदम पर तरह-तरह की असहजता, भेदभावपूर्ण व्यवहार का दंश झेलते हुए लड़कियों ने ऐसे शानदार परिणाम दिए हैं। इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि यदि इन्हें भी भेदभाव रहित माहौल मिले, इनके हुनर को मंच मिले तो इनके सपनों को भी हकीकत के धरातल पर साकार होने से कोई रोक नहीं सकता।

बहरहाल, उत्सव सरीखे इस माहौल में हिंदी को जो सम्मान मिला है, उससे निश्चित रूप से उन मेधाओं को हौसला मिलेगा जो भाषायी संकोच में पिछड़ते चले जाते हैं। अपनी मातृभाषा में आगे बढ़ते रहने के साथ-साथ अन्य भाषाओं पर भी पकड़ बनाने वालों को प्रोत्साहित करने की पूरी जरूरत है, लेकिन किसी एक भाषा के वर्चस्व को खत्म करने की हर कोशिश का स्वागत तो होना ही चाहिए।
केवल तिवारी

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