ऑपरेशन ब्लू स्टार को व्यवहारिक रूप देने वाले तथा ऑपरेशन के प्रत्येक पड़ाव पर इसमें शामिल रहे ले.ज. के.एस. बराड़ अपनी पुस्तक ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार का सच’ में इस ऑपरेशन को लेकर क्या सोचते हैं, वह आपके सम्मुख रखना चाहूंगा। पुस्तक की भूमिका में उन्होंने जो लिखा उससे उनकी मनोस्थिति को समझा जा सकता है। ‘मनुष्य अकसर खुद को एकदम अचानक ही किसी ऐतिहासिक लहर के शिखर पर बेहद नाजुक हालत में खड़े देखता है। एक सैनिक लीडर की जिंदगी में ऐसे मौके बहुत ज्यादा नहीं आते। यह एक वरदान है, क्योंकि सैन्य घटनाएं अधिकतर मनुष्यों के खून तथा कुर्बानी से लिखी जाती हैं। विद्रोह तथा आतंकवाद हमेशा ही सैन्य सूझ-बूझ से परामनुष्य (सुपरमैन) की मांग करते रहे हैं और विद्रोह, विरोधी कार्रवाईयों की गतिशीलता इनकी कानूनी मान्यता तथा न्यायिकता संबंधी संशय का असहनीय बोझ लाद देती हैं, विशेषत: जब सैन्य शक्ति का इस्तेमाल अपनों के विरुद्ध ही किया गया हो। 5 जून, 1984 की रात को कुछ ऐसा ही हुआ, जब भारतीय सेना को सिखों के अत्यंत पवित्र स्थान हरिमंदिर साहिब अमृतसर को, विभिन्न सशस्त्र जुनूनियों के समूहों से आजाद करवाने का कार्य अपने हाथों में लेना पड़ा। स्वार्थी अकाली (सिख) राजनीतिज्ञों का एक नायक तथा अनेक बदनसीब, बेगुनाह यात्री, बेवजह ही आमने-सामने होनेवाली गोलाबारी का शिकार हो गए। सशस्त्र-बल के ये समूह सिख राजनीति में लोकनायक की प्रसिद्धि पाने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले के वफादार थे, जिनके चुंधिया देने वाले प्रभाव ने पंजाब की घटनाओं का केंद्र-बिंदु ही बदलकर रख दिया था।… इसमें कोई शक नहीं कि हमले के खिलाफ हरिमंदिर के बचाव के लिए बहुत सोच-समझकर योजनाएं बनाई गईं और तैयारियां की गई थीं। यह एक अनुभवी जरनैल के चालबाज तथा तेज दिमाग की विलक्षणता थी। इस मामले में सुबेग ने हरिमंदिर क्षेत्र की मोर्चाबंदी में जबरदस्त कला तथा कौशल का प्रदर्शन किया था। अकाल तख्त की इमारत, जहां भिंडरावाला का हैड-क्वार्टर तथा कमान मोर्चा बनाया गया था, का एक केंद्रीय बचाव केंद्र के तौर पर बेहद होशियारी से चुनाव किया गया था।
सैन्य भाषा में, यदि इसे ‘दांव-पेंच महत्ता वाला स्थान’ या ‘अत्यंत अनिवार्य स्थान’ कहा जाए तो इसका मतलब है कि अकाल तख्त को बचाव-प्रणाली की धुरी स्वीकार करनी होगी। इसकी मोर्चाबंदी तहखाने से ऊपर की ओर की गई थी। जिसमें हथियार टिकाने के स्थान निर्धारण का यह सिलसिला जमीनी स्तर, खिडक़ी स्तर, रोशनदानों से बनाते हुए पहली मंजिल से ऊपरी मंजिलों तक चलता गया था। दीवारों तथा संगमरमरों को काटकर पक्के मोर्चे बनाए गए थे। अकाल तख्त तक आने वाले सभी पहुंच मार्गों पर अकाल तख्त को गहराई तथा सुरक्षा मुहैया करने के लिए समूचे हरिमंदिर परिसर के साथ लगती कुल इमारतों की छतों पर तथा रेत की बोरियों से भरी खिड़कियों में गोलीबारी करने के लिए मोर्चे बने हुए थे। बहुत ऊंची रामगढिय़ां बुर्जों तथा लंगर हॉल के निकट ऊंची पानी की टंकी पर हथियार टिकाने के लिए ऊंचे भड़े बने हुए थे। जहां कहीं संभव था, परिसर के कुछ अनजाने कोनों तथा नुक्कड़ों में मशीनगनों के ठिकाने बहुत जुगत से बनाए गए थे। जमीनदोज सुरंगों तथा खानों को बहुत कारीगरी से मौत के फंदे के रूप में तैयार किया गया था। इसके अलावा, हरिमंदिर के बाहरी चौगिरदा की किलेबंद इमारतों में अगली चेतावनी देने के लिए चौकियां बनाई गई थीं, जहां अतिवादी टुकडिय़ां पहरे पर खड़ी थीं। पूरी बचाव-प्रणाली में विस्तृत संचार-प्रबंध स्थापित किया गया था तथा खाने-पीने की चीजों का इतना बड़ा भंडार जमा किया गया था, जो अधिक नहीं तो दो महीने तक चल ही सकती थीं।…. अंतिम रूप में योजना का कार्यान्वयन करने से पहले कई योजनाओं की जांच-पड़ताल कर आखिरी फैसला लिया गया था। उस वक्त यही सबसे अधिक उपयुक्त लगा था। कोई और योजना आदर्श तब कहलाती अगर वह कुछ महीने पहले तथा धार्मिक पवित्र स्थान को गढ़ी बनाए जाने से पहले ही व्यवहार में लाई जाती, मगर अब यह इतिहास की बात है।
भारतीय सैनिकों ने अपने विरुद्ध आई भारी मुसीबतों के सम्मुख शानदार सब्र तथा बहादुरी का प्रदर्शन किया है। दयानतदारी से लड़ाई लडऩे के लिए, इसमें कोई शक नहीं कि फौज ने जख्मियों-मृतकों के हिसाब से भारी कीमत अदा की, और इसके जवानों ने अत्यंत उत्तेजना के बावजूद, दिए गए आदेशों का कभी उल्लंघन नहीं किया। एक अफसर होने के नाते मुझे अपनी कमान के अधीन जवानों को कुछ अत्यंत अप्रिय आदेश देने पड़े। मैंने उनकी निर्विवाद तथा अडिग आज्ञाकारिता, उनके द्वारा संयम से काम करने तथा अपने राष्ट्र की अखंडता को कायम रखने के उत्तम उद्देश्य के कारण ऐसा किया। उनकी कुर्बानी के लिए मैं उन्हें सलाम करता हूं। एक सैनिक ‘फर्ज, इज्जत तथा देश’ आदि चीजों की सौगंध लेता है तथा इसके लिए ही जीता है। भारतीय जवानों ने ब्लू स्टार कार्रवाई के दौरान इस शिक्षा की भरपूर पुष्टि की है, ऐसा शायद पहले कभी नहीं दिखा था।’
देश की एकता व अखण्डता के लिए शहीद हुए जवानों को सलाम करते हुए परमात्मा से यही प्रार्थना है कि देश को दोबारा ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े। देश के राजनीतिक दलों व उनके नेताओं को आज आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। राजनीतिक स्वार्थसिद्धि के लिए देशहित को दांव पर लगाना कितना घातक सिद्ध हो सकता है यह बात ऑपरेशन ब्लू स्टार से समझी जा सकती है। भविष्य में ऐसी संकीर्ण राजनीति न हो, इस बारे आज सभी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों को संकल्प लेना चाहिए। यही ऑपरेशन ब्लू स्टार में मरे ज्ञात व अज्ञात लोगों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। —
– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)
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