पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की एग्रोमेट्रोलॉजी की प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. प्रभजोत ने लोगों को आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है। अगर अभी भी हम नहीं बदलेंगे तो मौसम हमें बदल देगा। उन्होंने बताया कि पिछले 40 से 50 साल में पंजाब का न्यूनतम औसत तापमान एक डिग्री बढ़ चुका है। इससे मौसम में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। पंजाब में पिछले 20 साल के मानसून का विश्लेषण किया गया तो पाया कि सिर्फ दो-तीन साल ही मानसून जीवन में बारिश औसत या फिर औसत से थोड़ी ज्यादा हुई है। अन्य वर्षों में औसतन से कम ही बारिश हुई है। ये चिंताजनक है क्योंकि पंजाब में फसल के लिए बारिश की जरूरत पड़ती है। अगर इसी तरह बारिश कम होती जाएगी तो बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण की वजह से तापमान भी बढ़ सकता है और धरती पर पहुंचने वाली सूर्य की रोशनी भी बहुत धीरे-धीरे कम हो रही है।
गर्म जलवायु और मानसून में बारिश की कमी का अर्थ है कि पंजाब में भूजल का दोहन अधिक होगा, क्योंकि पंजाब में होने वाली फसलें गेहूं और धान के साथ गन्ना इन सब को पानी की बहुत मात्रा चाहिए। मौसम में आ रहे बदलाव के कारण जब बारिश कम होगी तो भूजल पर ही निर्भरता बढ़ेगी।
पंजाब में भूजल का स्तर तो पहले ही नीचे गिर चुका है। अगर फसल चक्र में बुनियादी परिवर्तन नहीं लाया गया तो पंजाब निकट भविष्य में भूजल संकट का सामना करेगा और हो सकता है कि पंजाब को पानी के मामले में राजस्थान जैसी स्थिति का सामना करना पड़े। समय की मांग है कि सरकार और किसान संगठन बदलते मौसम व मानसून में बारिश की कमी के कारण उत्पन्न हो रहे संकट पर मिलकर गंभीरतापूर्वक विचार करें। क्योंकि भूजल संकट हमारे वर्तमान व भविष्य दोनों को ही प्रभावित करने की क्षमता रखता है। इसी बात की चेतावनी हमारे विशेषज्ञ दे रहे हैं।
– इरविन खन्ना (मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू)
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